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सूरत

दुर्गम रास्तों से दौडक़र लपक लिया सोना

सरिता गायकवाड़ उडऩपरी पीटी उषा के नक्शे-कदम पर
मुश्किलों भरा रहा सफर

सूरतAug 31, 2018 / 09:14 pm

Sunil Mishra

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sarita gayakvad


राजेश यादव/ तुलसीदास वैष्णव. वापी/वांसदा. ‘होंगे राजे राजकुंवर, हम बिगड़े दिल शहजादे/ जा बैठे सिंहासन पर, जब-जब किए इरादे’… यह उस गीत (मेरा जूता है जापानी) की पंक्तियां हैं, जो वर्षों पहले शैलेन्द्र ने राज कपूर की फिल्म ‘श्री 420’ के लिए लिखा था। गुजरात के डांग जिले में पिछड़े आदिवासी गांव कराडीआंबा में गरीब परिवार की बेटी सरिता गायकवाड़ ने जकार्ता एशियाड में गोल्ड मेडल जीतकर साबित कर दिया है कि मंजिल चाहे जितनी लंबी और कठिनाइयों भरी हो, दृढ़ इरादा कर लिया तो उसे पाना नामुमकिन नहीं है। डांग जिले और गुजरात राज्य ही नहीं, पूरे देश के लिए गौरव बनी अंतरराष्ट्रीय धाविका सरिता गायकवाड़ आज सफलता के जिस मुकाम पर पहुंची है, वहां तक पहुंचना उसके लिए आसान नहीं था। कठिन और अभावग्रस्त परिस्थितियों से जूझते हुए सरिता अब पीटी उषा की तरह उडऩपरी के रूप में विख्यात हो चुकी है।
गुरुवार को इंडोनेशिया के जकार्ता में 18वें एशियाई खेलों में सरिता ने ४ गुणा ४०० मीटर रिले रेस में हिमा दास, पुवम्मा राजू और विस्मया के साथ दौड़ते हुए भारत की झोली में 13वां स्वर्ण पदक डाला था। इसके बाद सरिता पर पुरस्कारों की बरसात शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने उसे एक करोड़ रुपए के इनाम की घोषणा की है, जबकि वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय ने अपनी पूर्व छात्रा को दो लाख रुपए पुरस्कार के साथ विवि का ब्रांड एम्बेसेडर घोषित किया है। इससे पहले सरिता गायकवाड़ को जिला प्रशासन ने मतदान जागरुकता अभियान का यूथ आइकॉन तथा डांग पुलिस ने एसपीसी का ब्रांड एम्बेसेडर घोषित किया था। मूलत: खो-खो की इस खिलाड़ी के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर की धाविका बनने का सफर आसान नहीं रहा।
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खेतों में मजदूरी करते हैं माता-पिता
23 वर्षीय सरिता गायकवाड़ की मां रमूबेन और पिता लक्ष्मण गायकवाड़ खेतों में मजदूरी करते हैं। बीपीएल राशनकार्ड की सूची में दर्ज परिवार के लिए रोज खाने के लिए रोज कमाने वाले हालात रहे हैं। उसके बाद भी प्रतिभाशाली बेटी के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। आज भी रमू बेन और लक्ष्मण ने कराड़ी आंबा समेत कुछ गांव छोडक़र बाहर की दुनिया नहीं देखी। डांग के सीमावर्ती महाराष्ट्र के गांवों में मजदूरी के लिए बस में सफर करने वाले अपने बेटी के हवाई जहाज में बैठने की महज बात सुनकर ही रोमांचित और गौरवान्वित महसूस करते हैं। आज भी परिवार सामान्य झोपड़े में रहता हैं, जहां प्राथमिक सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं हैं। लक्ष्मण गायकवाड़ के अनुसार स्कूल के शिक्षकों द्वारा उसके खेल प्रतिभाओं के बारे में सुनकर अच्छा लगता था, लेकिन उसे इस क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए जरूरी साधन और सुविधाओं के बारे में सुनकर निराशा भी होती थी कि उन्हें पूरा करना उनके लिए संभव नहीं है। हालांकि सरिता ने उन अभावों को अपनी सफलता के आड़े नहीं आने दिया।

सफलता पर सिर्फ खुशी के आंसू
सरिता की सफलता पर मिलने वाली बधाई से भाव विभोर माता-पिता ने बताया कि पुत्री की सफलता पर बोलने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं। अगर कुछ है तो केवल खुशी के आंसू। इसमें उसे इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए सुने गए समाज के ताने और कष्ट भी बह गए हैं। डांग की स्वर्णपरी के माता-पिता की पहचान कायम होने पर रमूबेन और लक्ष्मण गायकवाड़ बेटी सरिता को इसका श्रेय देते हैं।
खो-खो छोडक़र बनी उडऩपरी
वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय की छात्रा रही सरिता गायकवाड़ पहले खो-खो की खिलाड़ी थी। खेल महाकुंभ में खो-खो स्पर्धा में उसे दौड़ता देखकर वहां मौजूद एक कोच ने उसमें उत्तम धावक के लक्षणों को पहचाना और उसे धावक बनने के लिए प्रेरित किया। उसके बाद बंदूक से गोली छूटने की तरह सरिता ने जो दौड़ लगाई, वह एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने तक लगातार जारी है। सरिता ने अपनी सफलता के लिए पिछले दिनों राज्य के खेलकुंभ महोत्सव को श्रेय दिया था। जिला स्तर पर खेल महाकुंभ में भाग लेने के बाद उसने गुजराज स्पोट्र्स अकादमी, नडियाद में रहकर कोच अजी मोन से सघन तालीम ली। यहां सरिता को जरूरी सुविधाएं भी मिलीं, जो अच्छी धाविका बनने के लिए जरूरी थीं।

कई राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय पदक जीते
सरिता ने स्कूल और यूनिवर्सिटी स्तर से लेकर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते हैं। पिछले दिनों उसने 58वीं इंटरस्टेट सीनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में चार सौ मीटर बाधा दौड़ में 58.01 सेकंड में राज्य के लिए कांस्य पदक जीता था। पटियाला में 27 फरवरी को आयोजित इंडियन ग्राण्ड प्रिक्स एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में चार सौ मीटर दौड़ में 54.08 सेकन्ड में दौड़ पूरी कर ब्रांज मेडल, इंडोनेशिया में वर्षान्त में आयोजित चार सौ मीटर हर्डल्स और चार गुणा चार सौ मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीता था। इससे पहले आंध्रप्रदेश में आयोजित 57वीं राष्ट्रीय अंतरराज्यीय सीनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में चार सौ मीटर में ब्रांज और इंटर यूनिवर्सिटी एथलेटिक्स 2017 में गोल्ड मेडल समेत कई पदक जीत चुकी सरिता नौ जुलाई से पोलैन्ड के यूरोप में एशियाड के लिए सघन प्रशिक्षण प्राप्त कर रही थी और वहां से सीधे जकार्ता पहुंची थी। इससे पहले उसने जकार्ता में ही फरवरी में आयोजित एशियन गेम्स इवेंंट में ४ गुणा ४०० मीटर रिले दौड़ एवं ४०० मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीते थे। एशियाड में पदक जीतने के बाद उसका अगला लक्ष्य ओलम्पिक में पदक जीतना है।

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