मामला 15 अक्टूबर 2000 का है- कूरेभार थाना क्षेत्र के बरजी गांव निवासी देवमणि मिश्र ने 15 अक्टूबर वर्ष 2000 की घटना के बारे में बताते हुए कहा कि गांव की ही महिला प्रेमादेवी, हवलदार शुक्ल व रामदेव मिश्र के खिलाफ उसकी पत्नी राजलक्ष्मी का अपहरण करने का आरोप लगाया। पुलिस ने मामले में पहले मामूली लिखा-पढ़ी की थी, जिसके चलते न तो आरोपियों पर कोई कार्यवाही हुई आैर न ही राज लक्ष्मी की बरामदगी ही हो पायी। पुलिसिया कार्यशैली के खिलाफ देवमणि ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की तो हाईकोर्ट के निर्देश पर हरकत में आयी। पुलिस ने घटना के करीब 8 वर्ष बाद 12 सितम्बर 2008 को आरोपियों के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज किया। कई वर्षों तक मामले की तफ्तीश तत्कालीन विवेचक करते रहे, जिन्होंने वर्ष 2013 में आरोपियों को क्लीन चिट देते हुए कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट दाखिल कर दी। फाइनल रिपोर्ट को देवमणि ने चुनौती दी, तो 21 जनवरी 2014 को कोर्ट ने मामले में अग्रिम विवेचना का आदेश दिया।
वर्षों चली पुलिस की लचर तफ्तीश- कूरेभार पुलिस की लचर तफ्तीश कई महीनों तक जारी रही, तो देवमणि ने फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट के निर्देश पर तात्कालीन एसपी ने कूरेभार थाने से विवेचना हटाकर क्राइम ब्रांच के सुपुर्द कर दी। विवेचक धर्मराज उपाध्याय को तफ्तीश मिली, जिन्हें अभियोगी के गवाहों ने शपथ पत्र के साथ अपना बयान भी दिया, लेकिन मनमानी तफ्तीश कर रहे हैं विवेचक ने उनके बयान व शपथ पत्र को विवेचना का अंग बनाया ही नहीं आैर पुरानी फाइनल रिपोर्ट को ही दोहराते हुए पुन: वही रिपोर्ट भेजने की तैयारी कर ली। सितम्बर वर्ष 2014 में विवेचक धर्मराज उपाध्याय ने यह रिपोर्ट सीओ कार्यालय को भेज दी। जिसके बाद से करीब चार वर्षों तक तफ्तीश रिपोर्ट कार्यालय में ही घूमती रही। उधर देवमणि मिश्र ने कोर्ट में मानीटरिंग अर्जी दी तो कोर्ट ने संबंधित विवेचक, क्षेत्राधिकारी कार्यालय से जवाब भी मांगा। यहां तक कि एसपी को भी पत्र भेजकर प्रकरण से वाकिफ कराया गया, लेकिन पुलिस का हाल वही रहा।
पुलिस भेजती रही भ्रामक रिपोर्ट- कई पेशियों तक पुलिस भ्रामक रिपोर्ट भेजकर कोर्ट को भी गुमराह करती रही। पिछली पेशी पर जब न्यायाधीश हरीश कुमार ने मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए लंभुआ थाने में उपनिरीक्षक पद पर तैनात तात्कालीन हेड पेशी सच्चिदानंद पाठक को तलब कर जवाब मांगा तो उनके पसीने छूट गये। नतीजतन हरकत में आये सच्चिदानंद ने स्वयं का ट्रांसफर हो जाने का तर्क पेश करते हुए तफ्तीश रिपोर्ट ढूढने के लिए समय की मांग की। जिस पर अदालत ने उन्हें समय देते हुए सुनवाई के लिए 18 अक्टूबर की तिथि नियत की थी। जिसके पश्चात बौखलाये सच्चिदानंद पाठक व अन्य जिम्मेदार कर्मियों ने वर्षों से गायब प्रकरण की विवेचना रिपोर्ट को ढूंढकर कोर्ट में दाखिल भी कर दिया। अब अदालत ने मामले में सुनवाई के लिए आगामी 27 अक्टूबर की तिथि तय की है।