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खामोश हो गयी वो आवाज़ जिसने डोनाल्ड ट्रम्प को नस्लभेदी नीतियों पर खूब सुनाई थी

खामोश हो गयी वो आवाज़ जिसने डोनाल्ड ट्रम्प को नस्लभेदी नीतियों पर खूब सुनाई थी -अश्वेत अमरीकियों की बुलंद आवाज थीं टोनी मॉरिसन-साहित्य के लिए नोबेल सम्मान पाने वाली वें पहली अश्वेत लेखिका थीं, उन्होंने अपने उपन्यासों में अफ्रीकी मूल के अमरीकी समाज की नस्लीय भेदभाव के साए में हो रहे संघर्ष को दर्शाया था

जयपुरAug 10, 2019 / 08:29 pm

Mohmad Imran

साहित्य के लिए नोबेल सम्मान पाने वाली वें पहली अश्वेत लेखिका थीं, उन्होंने अपने उपन्यासों में अफ्रीकी मूल के अमरीकी समाज की नस्लीय भेदभाव के साए में हो रहे संघर्ष को दर्शाया था

खामोश हो गयी वो आवाज़ जिसने डोनाल्ड ट्रम्प को नस्लभेदी नीतियों पर खूब सुनाई थी

वे पहली अश्वेत महिला उपन्यासकार थीं जिन्हें 1993 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था। इतना ही नहीं वे पहली अश्वेत महिला थीं जिन्हें किसी भी श्रेणी में यह पुरसकार मिला हो। बीते सप्ताह दुनिया को अपने बेहतरीन उपन्यासों का उपहार देकर वे अलविदा कह गईं। देश की अपने उपन्यासों के माध्यम से 88 वर्षीय टोनी मॉरिसन ने एक नायक की आंखों से अमरीकी समाज में व्याप्त सामाजिक असहमति को चित्रित किया था। उन्होंने अफ्रीकी मूल के अमरीकी लोगों की वास्तविक तस्वीर अपने पात्रों के रूप में पूरी दुनिया के सामने रखी।
उनकी लेखनी में कितना प्रभाव था इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें 1988 में पुलित्जर अवॉर्ड और साल 2012 में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमरीका के सबसे बड़े नागरिक सम्मान प्रेसिडेंशियल मेडल से नवाजा था। टोनी के लिखे ‘सोंग ऑफ सोलोमन’ उपन्यास को बराक ओबामा बहुत पसंद करते हैं। साल 2006 में उनके उपन्यास ‘बीलव्ड’ को बीते 25 सालों का सबसे बेहतरीन अमरीकन उपन्यास घोषित किया गया था।
1931 में ओहियों में पैदा होने वाली मॉरिसन को 1970 के दशक से उनके काम के लिए पहचाना जाने लगा था। एक उपन्यास में एक अंधी महिला कहती है कि ‘मृत्यु जीवन का वास्तविक अर्थ हो सकता है लेकिन हमें फिक्र करने की जरुरत नहीं क्योंकि हम भाषा के धनी हैं जो हमारे जीवन के तमाम कर्मों की कसौटी बन सकती है।’ 1993 में जब उन्हें नोबेल सम्मान दिए जाने वाला था तो ऊंची हील और फर्श तक लटकते गाउन के कारण उन्हें चलने में बहुत परेशानी हो रही थी। तब स्वेडन के राजा ने उनका हाथ पकडकर उन्हें स्टेज तक लेकर आए। यह टोनी जैसे अश्वेत बुद्धिजीवियों के लिए जीत का क्षण था जिसके लिए उन्होंने एक लंबा संघर्ष किया था।

नस्लीय भेदभाव ने उनका पीछा नोबेल पाने तक नहीं छोड़ा। 1987 में द नैशनल बुक अवॉर्ड प्राइज उनकी बजाय लैरी हैनीमैन को दिया गया जिसे खुद लैरी ने हैरान कर देने वाला निर्णय बताया था। इसके बाद 1988 में द नैशनल बुक क्रिटिक्स सर्कल अवॉर्ड भी टोनी मॉरिसन को न देकर फिलिप रॉथ को दे दिया गया जबकि उनका बीलव्ड उपन्यास इस सम्मान का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। इसके विरोध में सप्ताह भर बाद 48 अश्वेत बुद्धिजीवियों ने समाचार पत्रों में खुला पत्र लिखकर अपना विरोध भी जताया था। इसके तीन महीने बाद उन्होंने उसी उपन्यास के लिए उस साल का पुलित्जर अवॉर्ड जीता था।


टोनी मॉरिसन एक नजर में
-द ब्लूएस्ट आइज, 1970 में पहला नॉवेल
-बीलव्ड, 1987, पुलित्जर अवॉर्ड मिला
-साहित्य का नोबेल सम्मान, 1993 में
-25 सालों का सबसे बेहतरीन बेस्ट सेलर नॉवेल बीलव्ढ घोषित 2006
-प्रेसिडेंशियल मैडल सर्वोच्च अमरीकी नागरिक सम्मान, 2012
-नैशनल बुक्स क्रिटिक्स सर्कल अवॉर्डए 1970, फॉर सोंग्स ऑफ सोलोमन
-1998 में टाइम मैग्जीन ने उन्हें अपने कवर पर जगह दी

अश्वेतों की बुलंद आवाज थीं
उनके उपन्यास बीलव्ड के लिए उन्हें 1988 में पुलित्सर पुरस्कार भी मिला था। इस उपन्यास में एक मां की कहानी थी जो जिस्मफरोशी के धंधे से बचाने के लिए अपनी बेटी का कत्ल कर देती है। मॉरीसन का करियर करीब छह दशक लंबा रहा। इस दौरान उन्होंने 11 उपन्यास, पांच बाल साहित्य, दो नाटक, एक गीत और एक ओपेरा लिखा था। वे एक संपादक और प्रोफेसर भी रही थीं। अश्वेत होने के चलते अपने करियर की शुरूआत में उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा था।

इसी दौरान उन्होंने अपना पहला उपन्यास दा ब्लूएस्ट आई लिखा। इसमें एक अश्वेत लड़की की कहानी थी जो गोरे रंग के प्रति आकर्षण के चलते अपनी आंखों का रंग नीला करवा लेती है। 2008 में मॉरीसन ने राजनीतिक रूप से पहली बार पक्ष लेते हुए बराक ओबामा का राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन किया था। इतना ही नहीं 2016 में उन्होंने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के श्वेत सुप्रीमेसी के लिए भी उनका विरोध किया। अश्वेत होने के चलते उनके साथ खूब भेदभाव हुआ, लेकिन उन्होंने इन भेदभाव की कहानियों को अपनी लेखनी में उतारा। उनका लिखा हुआ सॉन्ग ऑफ सोलोमन भी खासा प्रसिद्ध है। टोनी के मुताबिक ये गाना उन्होंने अपने परिवार में सुना था जो उन्हें खासा पसंद था।

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