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विज्ञान के क्षेत्र में भारत का दबदबा, समाज विज्ञान में हालत खराब

locationनई दिल्लीPublished: Sep 13, 2017 12:15:00 pm

Submitted by:

Dhirendra

स्प्रिंग नेचर उच्च गुणवत्ता वाली वैज्ञानिक अनुसंधान रिपोर्ट -2016 रिपोर्ट में बताया गया है कि हालिया अनुसंधान की संख्या चीन और भारत में तेजी से बढ़ा ह

scientific research increase in india rapidly not in social science

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मिली नई पहचान 

भारत ने यह उपलब्धि अपने वैज्ञानिक शिक्षण व अनुसंधान संस्थानों के बल पर हासिल की है। पिछले कुछ वर्षों में भारत के पांच अनुसंधान केन्द्रों ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। जबकि इसी दौरान देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों का प्रदर्शन पहले से ज्यादा खराब हो गया है। हालात यह हैं कि वल्र्ड यूनिवर्सिटीज रैंकिंग में पिछले साल जहां 250 की सूची में तीन भारतीय शिक्षण संस्थान शामिल थे वो अब घटकर मात्र दो रह गए हैं। इतना ही नहीं, अन्य भारतीय संस्थानों की रैकिंग में भी गिरावट दर्ज हुई है। अगर बात बात सोशल साइंस के क्षेत्र में अनुसंधान की करें तो भारत की स्थिति बहुत कमजोर है। इसमें एक तो अनुसंधान बहुत कम होते हैं और जो होते हैं उनमें से अधिकतर अंग्रेजी भाषा में होते हैं।
भारत के टॉप-5 अनुसंधान संस्थान
दुनिया के टॉप 100 अनुसंधान संस्थानों में भारत के पांच संस्थान हैं। इनमें वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर), टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साईंस (आईएससी) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटीज) शामिल हैं। स्प्रिंगर नेचर के दुनिया के 8,000 से अधिक संस्थानों के सर्वे के मुताबिक भारत का स्थान चीन के बाद दूसरा है। भारत को यह स्थान उच्च गुणवत्ता वाली वैज्ञानिक शोध के आधार पर दिया गया है। यह इस बात का संकेत है कि इंडिया वैज्ञानिक अनुसंधान में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
सबसे ज्यादा शोध रसायन विज्ञान में
भारत के कुल वैज्ञानिक शोधों में 51 फीसद अनुंसधान रसायन विज्ञान के क्षेत्र से हैं। लगभग 36 फीसद शारीरिक विज्ञान, 9 फीसद लाइफ साइंस, 4 फीसद अर्थ और एनवायरनमेंटल साइंस से शामिल हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लायड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) की रिपोर्ट के अनुसार आज भी स्कूलों में पढऩे वाले 3 प्रतिशत से कम बच्चे साइंस में पढ़ाई करना चाहते हैं।
ओवरऑल योगदान में अमरीका अव्वल
पहले की तरह आज भी ओवरऑल योगदान देने के मामले में अमरीका नंबर वन राष्ट्र है। टॉप 100 में अमरीका के 11 संस्थान शामिल हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान इंडेक्स 2015 के अनुसार ब्रिटेन के नौ, जर्मनी के आठ, भारत के पांच संस्थान शामिल हैं। स्प्रिंग नेचर इंडिकेटर 2016 में कहा गया है कि वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में भारत राइजिंग स्टार के रूप में उभर रहा है। दुनिया के उभरते टॉप-100 में चीन के 40 संस्थान हैं। इनमें से 24 में 50त्न से अधिक का शोध ग्रोथ रेट है। हालांकि भारत को यह स्थान हासिल करने के लिए लंबा संघर्ष करना होगा।
चीन के पीछे भारत
वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में भारत जीडीपी का १त्न शोध और अनुसंधान पर खर्च करता है। जबकि चीन जीडीपी का 2.1त्न खर्च करता है। चीन का जीडीपी भी भारत से कई गुणा ज्यादा है। चीन वर्तमान में अनुसंधान पर प्रति वर्ष करीब 2.9 खरब रुपए खर्च होते है। हालांकि भारत चीन की तुलना में कम खर्च करने के बावजूद ग्लोबल स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुआ है।
अनुकूल माहौल पर जोर दे सरकार
सर्वे का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर डर्क हांक के अनुसार, भारत सरकार को चाहिए कि वो अनुसंधान के लिए अनुकूल माहौल और ढांचागत सुविधा विकसित करने पर जोर दे, ताकि प्रतिभाशाली छात्र और शिक्षाविद अपने देश से बाहर कहीं और जाने की न सोचें। भारत में ऐसा हुआ तो विदेशों में शोधरत छात्र व भारतीय वैज्ञानिक अपने देश वापस लौट सकते हैं। एनआरआई भी ऐसा ही चाहते हैं।
सोशल साइंस में केेेेवल 1.6 फीसद का योगदान
आईसीएसएसआर की रिपोर्ट के अनुसार 2009 से 2014 के दरमियान दुनियाभर में सोशल साइंस में 16.6 लाख शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर के जर्नल में प्रकाशित हुए। इनमें भारत योगदान केवल 1.6 फीसद का रहा। चौंकाने वाली बात यह है कि सोशल साइंस में शोध के लिए देशभर में केवल 159 संस्थान हैं।
अंग्रेजी में होते हैं 90 फीसद शोध
एक अचरज की बात ये भी है कि सोशल साइंस में होने वाले कुल शोधों में से 90त्न शोध अंग्रेजी में होता है। हिंदी का योगदान केवल 07 फीसद है। अन्य भारतीय भाषाओं में केवल 03 फीसद शोध पत्र प्रकाशित होते हैं।
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