दीवारी के दौरान पुतला दहन के बाद वे बड़ी रोटी यानि सामूहिक तौर पर परिवार और रिश्तेदारों के साथ खाने का आयोजन करते हैं। हालांकि समय के साथ गैर जनजाति के लोगों के बीच घुलने- मिलने से अब थारू जनजाति क्षेत्र में भी रीति-रिवाजों में धीरे-धीरे परिवर्तन आने लगा है। यदा-कदा अब कुछ थारू अन्य वर्गों की तरह दीपावली भी मनाने लगे हैं।
आज से दीपावली पर्व आरंभ, जानिए किस दिन कौनसी पूजा का क्या मुहूर्त है थारु समाज के वरिष्ठ नेता व पूर्व विधायक गोपाल सिंह राणा कहते हैं कि थरूवाट में धीरे-धीरे बदलाव आ रहे हैं लेकिन दीवारी की अब भी प्रथा कायम है। उन्होंने कहा कि किसी की मरने पर उसका शव चारपाई पर श्मशान तक लेकर जाते हैं। मृतक को कंधा देने वाले लोगों को शवदाह के अगले शनिवार रोटी दी जाती थी। उसके बाद दिवाली के दिन बड़ी रोटी की जाती है। इस प्रथा में सभी रिश्तेदार, परिवार के लोग शामिल होते हैं। वे मरने वाले व्यक्ति का पुतला बनाकर उसके नाम का दीप जलाकर शोक व्यक्त करते हैं।
मूलत: यह राजस्थान की परंपरा है। यह पुष्कर में आज भी प्रचलन में है। परंपरा के अनुसार सुबह के समय भोज होता है जिसमें मीट, मुर्गा, मछली, दाल, चावल, गुलगुला, कतली सहित सभी थरुवाटी व्यंजन बनाकर मृतक आत्मा को भोग लगाया जाता है। थारू जनजाति पुष्कर क्षेत्र से विस्थापित होकर कुमायूं मंडल के कई क्षेत्रों खास तौर पर खटीमा के कई इलाकों में बस गई लेकिन वे अपनी पुरानी परंपराओं को साथ लेकर चलते रहे।