बाणसागर डैम की डूब प्रभावित क्षेत्र में आने पर 1999 में सनगा की जमीन और उसकी परिसंपत्तियों के अवार्ड सभी भू-स्वामियों को दे दिए गए थे। अगर किसी का छूट भी गया तो अगले कुछ महीनों में उन्हें दे दिए गए थे। पर अब चौबीस साल बाद जबकि बांध की अथाह जलराशि में सनगा का अस्तित्व ही नहीं रहा है, अधिकारियों ने अचानक यह फैसला दिया है कि उनसे एक हितधारक के मुसम्मी और अमरूद के बड़े बागान का अवार्ड बनने से रह गया है। उन्होंने इसके अवार्ड का प्रस्ताव भी बनाकर अनुमोदन के लिए भेज दिया है।
प्रस्ताव इसलिए आपत्तिजनक है कि इसमें इस पर रोशनी नहीं डाली गई है कि अधिकारियों को अचानक से 24 साल बाद मुसम्मी और अमरूद का यह बागान कैसे दिख गया? प्रस्ताव में इसका उल्लेख है कि हितधारक ने 2008 में इसका आवेदन किया था, लेकिन तब यह आवेदन क्यों खारिज हुआ था, इसका कारण अधिकारियों ने नहीं बताया है। और यह भी आधार नहीं दिया है कि 2008 में खारिज किए गए आवेदन को मंजूर करने लायक क्या तथ्य उन्हें अब मिल गए हैं।
मुआवजे का ब्याज और क्षतिपूर्ति के साथ प्रस्ताव आधिकारिक तौर पर भी नियम विरुद्ध है। 1999 में प्रभावी भू-अर्जन अधिनियम में घोषणा प्रकाशन की तारीख से दो साल की अवधि के भीतर धारा 11 के तहत अवार्ड देने और किसी वजह से नहीं दे पाने पर भू-अर्जन की कार्यवाही समाप्त करने का प्रावधान था। इस हिसाब से इतने साल बाद धारा 11 में मुआवजे का प्रस्ताव बनाया ही नहीं जा सकता था। दूसरा पहलू यह है कि अगर जरूरी हो तो नए सिरे से पूरक अवार्ड बनाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कार्यपालन यंत्री को प्रस्ताव देना होता है और धारा 4 में यह कार्रवाई की जाती है, जो इस मामले में नहीं हुए हैं।
भू-अर्जन के 2013 में लागू हुए नए कानून के मुताबिक तो नए कानून से पांच साल पहले की प्रतिकर के लिए लंबित हर तरह की कार्यवाही को खत्म मान लिया गया है। इसके बाद जरूरी होने पर नए अधिनियम के उपबंधों के अनुसार भू-अर्जन की कार्यवाही नए सिरे से आरंभ करने का नियम है। इस आधार पर 1999 के मामले में किसी भी तरीके से पुराने धारा 11 के तहत पूरक अवार्ड नहीं बनाए जा सकते ।
” बिना प्रकरण देखे इस मामले में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। मामला काफी पुराना है। प्रस्ताव भू-अर्जन के प्रावधानों के तहत ही अनुमोदित होते हैं ” – अनुराग वर्मा, कलेक्टर, सतना