दरअसल अयोध्या विवाद पर अरशद मदनी ने कहा कि सुनवाई के लिए जमीयत उलमा-ए-हिंद के वकीलों का पैनल पूरी तैयारी कर चुका है। इतना ही नहीं वकीलों ने इस मसले पर अदालत में मजबूत पैरवी ही नहीं की बल्कि मस्जिद से जुड़े तमाम प्राचीन दस्तावेज भी अदालत को मुहैया कराए हैं। जिनका अनुवाद भी जमीयत ने कराकर दिया है।
मौलाना मदनी ने कहा कि यह एक मजहबी मामला नहीं बल्कि संविधान और कानून के सम्मान से जुड़ा मामला है। इसलिए आस्था की बुनियाद पर इस पर कोई फैसला नहीं हो सकता। मुसलमान इस मुल्क के शांतिप्रिय शहरी हैं और मुल्क के संविधान का साफ दिल से सम्मान करते हैं। यही वजह है कि फिरकापरस्त ताकतों की तमाम धमकियों के बावजूद आज तक उन्होंने सब्र का दामन नहीं छोड़ा।
उन्होंने कहा कि इस हकीकत से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस मुकदमे को लेकर अदालत पर फिरकापरस्त ताकतों की और से जबरदस्त दबाव बनाने की कोशिशें हो चुकी हैं और सरकार से अदालती फैसले की जगह कानून बनाने की मांग जोरशोर के साथ की जा रही है। मदनी ने पीएम मोदी के इंटरव्यू का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अपने बयान में अदालती फैसले का इंतजार करने की बात जरुर कही है मगर यह इशारा भी दिया है कि जरुरत हुई तो उनकी हुकुमत मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश ला सकती है। मौलाना मदनी ने कहा कि हमें इस बात का पूरा यकीन है कि अदालत सबूत और गवाहों की बुनियाद पर फैसला देगी आस्था की बुुनियाद पर नहीं।