निष्ठावान मनुष्य एक मार्ग का सतत अनुसरण करता है । वैसा करने से उसे थकान नहीं आती और ना बोझ ही मालूम होता है । वह उसके लिए सहज स्वाभाविक चीज बन जाती है । निष्ठा का लक्षण ही सातत्य है । सूर्य नारायण को भांन नहीं रहता कि ‘मैं प्रकाश दे रहा हूं’– क्योंकि, वह सत्य पूर्वक चला चलता है । साधना सतत करने से वह इतनी अंग भूत हो जाती है कि उसका भान ही शेष नही रह जाता ।
साधना का भान साधना का साधनात्व तो लुप्त हो जाती है । उपासना में सातत्य मुख्य वस्तु है एक एक बूंद की सतत धार पढ़ना ही उपासना है । शिव जी पर धीरे-धीरे ही अभिषेक करना पड़ता है । दो बाल्टी पानी एकदम उडेल देने से वह सफलता नहीं मिल सकती । समान संस्कारों की धारा सतत बहनी चाहिए ।
जो संस्कार सवेरे वही दोपहर को, वहीं शाम को, वही दिन में, वही रात में, वही आज,जो आज वही कल, जो इस साल वही अगले साल, जो इस जन्म में वही अगले जन्म ! जो जीवन में ;वही मृत्यु में । ऐसे 1-1 सत्संस्कार की दिव्य धारा सारे जीवन में सतत बहती रहनी चाहिए । संस्कार यदि आते और मिटते गए तो क्या फायदा ?
जब जीवन में संस्कारों का पवित्र प्रभात बहता रहेगा तभी अंत में मरण महा आनंद का निदान मालूम पड़ेगा । जो यात्री रास्ते में जाते हुए रास्ते के मोह से और प्रलोभन से बचते हुए; कष्ट से कदम जमा- जमाकर शिखर पर पहुंच गया; ऊपर पहुंचकर छाती पर के सारे बंधन हटाकर वहां की खुली हवा का अनुभव करने लगा! उसके आनंद की कल्पना क्या दूसरे लोग कर सकेंगे ??
पर जो प्रवासी रास्ते में रुक गया उसके लिए सूर्य थोड़े ही रुकेगा । सूर्यनारायण तो 24 घंटे काम करता है । क्योंकि वह मिसाल है । जो निरंतर कार्य नहीं करता वह रिक्रिएशन मनोरंजन है । फुर्सत से काम करने वालों का समाज पर असर नहीं होता । सातत्य से काम करने वालों को ही लोग सुनते हैं ।