इस तरह हुआ घटनाक्रम मिड टाउन निवासी सुधांशी तिवारी की चार साल की बेटी अन्विका गुरुवार को घर में खेलते समय शाम करीब पौने सात बजे घायल हो गई। गिरने से उसकी ठोढ़ी (दाढ़ी के नीचे के हिस्से में) लग गई। काफी खून बहने से चिंतित परिजन सीधे उसे लेकर निजी अस्पताल गए। यहां डॉक्टर ने चेकअप के बाद कहा कि जिला अस्पताल ले जाओ वहां संभवत: टांके लगेंगे। परिजन उसे बाल चिकित्सालय ले गए किंतु वहां से भी जिला अस्पताल ले जाने को कहा। इधर-उधर ले जाने और रोते हुए थक चुकी बच्ची जिला अस्पताल तक ले जाते हुए सो चुकी थी। यहां ड्यूटी डॉक्टर शैलेद्र माथुर ने हाथ की नस संभाली और आंख खुली करके देखने के बाद कहा मामला सीरियस है इसलिए बाल चिकित्सालय ले जाओ। परिजनों ने कहा कि वहां से यहां भेजा है तो भी डॉ. माथुर नहीं माने और बिना देखे ही रवाना कर दिया। जाते समय डॉ. ने पिता सुधांशु को एक-तरफ बुलाकर कहा कि इन्हें मत बताना क्योंकि बच्ची मर चुकी है इसलिए मैेंने बाल चिकित्सालय भेज दिया है। यह सुनते ही परिजनों के होश उड़ गए। फिर भी हिम्मत करके बच्ची को दोबारा लेकर बाल चिकित्सालय पहुंचे। इस दौरान की पत्नी ने बच्ची को गाल पर थप्पी मारते हुए जगाया तो वह रोने लगी। यह देख और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ। यहां बच्ची को डॉक्टर ने देखा और घाव को साफ करके ड्रेसिंग करते हुए घाव ठीक करने का सोल्युशन लिखकर कहा कोई गंभीर बात नहीं है बच्ची को आराम से घर ले जा सकते हैं।
गंभीर मामला है नोटिस देकर जवाब मांगेंगे किसी भी मरीज को एकदम से कोई भी डेड घोषित नहीं कर सकता है। इसकी एक प्रक्रिया होती है जिसके बाद ही किसी को मृत घोषित किया जा सकता है। डॉ. माथुर ने ऐसा किया है तो गलत है और यह डॉक्टरी पैशे के खिलाफ है। परिजनों की शिकायत मिली है। हम डॉक्टर माथुर को नोटिस देकर जवाब मांग रहे हैं। संतोषजनक जवाब नहीं होने पर कार्रवाई करेंगे।
डॉ. आनंद चंंदेलकर, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल