1. सड़कों पर जगह-जगह गड्ढे हैं। गुणवत्ता को लेकर सवाल खड़े होते हैं। शहर को गड्ढामुक्त सड़क करना चुनौती है। 2. शहर में मात्र एक बस स्टैंड है। जबकि मास्टर प्लान के अनुसार चारों दिशा में एक-एक उप बस स्टैंड होना चाहिए।
4. टमस व सतना नदी में समय से पहले ही पानी खत्म हो जाता है। इसे रोकने के लिए नए एनीकेट बनाने की जरूरत है।
5. शहर के अंदर संचालित डेयरी, उद्योग व लकड़ी व्यापार को दूर ले जाना होगा। ताकि शहर की सड़कों से मवेशीराज खत्म हो सके।
6. अव्यवस्थित यातायात को पटरी पर लाना, सभी चौराहों के सिग्नल को सही रखना व नियमों का पालन करना चुनौती होगा।
7. प्रमुख सड़क से लेकर नाले-नालियों व गलियों में अतिक्रमण है। इसे हटना भी चुनौती से कम नहीं है।
8. दिन में जलती स्ट्रीट लाइट व रात में अंधेरा शहर की हकीकत है।
9. जलकर व संपत्तिकर वसूली में निगम पीछे है। इसे बढ़ाना होगा। ताकि स्मार्ट सिटी फंड में योगदान दे सके।
10. नगर निगम के पार्कों की बदतर स्थित को दुरुस्त करना होगा।
सौर ऊर्जा व सौर स्ट्रीट लाइट, अतिरिक्त विकास, अर्बन मोबलिटी, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, शहरी परिवहन, हार्वेस्टिंग सिस्टम, भूमिगत उपयोगिता वाहिनी, जलापूर्ति, बुनियादी विकास, सीवरेज सिस्टम, बिजली व दूरसंचार, पार्क व झील-तालाब के समीप विकास, ई-गर्वनेंस व स्मार्ट सुविधा, पीएनजी पाइपलाइन।
शहरवासियों को 24 घंटे पानी देने का दावा किया गया था। इस प्रोजेक्ट को करीब 3 वर्ष पहले ही पूरा हो जाना चाहिए था। लेकिन, अब तक पूरी तरह क्रियान्वित नहीं हो सका है। विलंब होने के कारण ८० करोड़ के प्रोजेक्ट की लागत ११० करोड़ पहुंच गई।
42 करोड़ के बजट से एक साल पहले अमृत योजना शुरू हुई। इसके तहत पेयजल पाइपलाइन बिछाने का काम होना था। यह निर्धारित समय से 20 फीसदी विलंब से चल रहा है। ठेका कंपनी को 15 करोड़ से अधिक का काम करना था।
206 करोड़ से शहर में सीवर योजना को अमलीजामा पहनाना था। 5 महीने पहले कार्य प्रारंभ होना चाहिए था, लेकिन भूमिपूजन के बाद कार्य आगे नहीं बढ़ सका। अनुबंध होने के बाद 3 वर्ष के अंदर काम पूरा करना है।
बस स्टैंड में निर्माणाधीन शॉपिंग कॉम्प्लेक्स भी अब तक अधूरा ही है। यह लगभग 4 करोड़ की लागत से तैयार हो जाना था। निगम की लापरवाही के चलते ठेका कंपनी अब तक काम पूरा नहीं कर सकीं। जबकि तय तिथि भी समाप्त हो चुकी है।
188 करोड़ के बड़े फंड से प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत तकरीबन 2 हजार मकान बनाने की अनुमति दी गई। यह प्रोजेक्ट भी तय समय से एक साल विलंब चल रहा है। कई बार संबंधित ठेका कंपनी को नोटिस भी जारी हो चुकी है।
योजना के तहत उतैली में 270 मकान गरीबों के लिए बनाए जाने थे। जो 2011 से शुरू कर 2013 में पूर्ण करना था। लागत 7 करोड़ 25 लाख थी। लेकिन यह अधूरा ही रह गया। अब इसी वर्ष के मार्च में यह प्रोजेक्ट बन सका।