बोन मैरो ट्रांसप्लांट से उपचार पर हर एक के बस की बात नहीं
थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी में बोन मैरो प्रत्यारोपण एक कारगर उपचार पद्धति है। थैलेसीमिया रोगियों के उपचार और रोग की रोकथाम की दिशा में कार्यरत नीमच की थैलेसीमिया वेलफेयर सोसाइटी अध्यक्ष सतेंद्रसिंह राठौड़ का कहना है कि बोन मैरो प्रत्यारोपण पद्धति से इस रोग के उपचार में मदद मिलती है। 90 से 98 प्रतिशत रोगियों का उपचार इस पद्धति से मुमकिन है। इसके लिए ब्लड ग्रुप मैच होने के बाद बोन मैरो मैच किया जाता है। मैच होने के बाद एक विशेष पद्धति से बोन मैरो उत्सर्जन कर प्रत्यारोपित किया जाता है। तनवी को कुछ वर्षों से हर 10 दिन में एक यूनिट ब्लड चढ़ाया जा रहा है। यहां से परिवार व संस्था के साथ नई दिल्ली रवाना हुए। इस दौरान परिवार के सदस्यों के साथ अध्यक्ष सतेंद्र राठौड़, आलोक अग्रवाल, अशोक सोनी, प्रदीप व्यास मौजूद रहे। थैलेसीमिया एक ऐसी बीमारी है, जिसमें पीड़ित मरीज के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। उसके बाद मरीज में धीरे-धीरे रक्त की कमी हो जाती है। ऐसे मरीज को बार-बार रक्त चढ़ाना पड़ता है। अमूमन जन्म के 3 से 4 महीने बाद इस बीमारी का पता लगता है। सही समय पर इस बीमारी का पता लगने पर मरीज के जीवन को बचाया जा सकता है। जीवित रहने के लिए भी मरीज को बार-बार अस्पताल में खून चढ़वाने और सामान्य बीमारियों की स्थिति में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में मरीज और उनके परिजनों को यह बीमारी केवल शारीरिक और मानसिक रूप से भी तोड़ देती है।