जरूरत पड़ने पर निगरानी भी संभव
दागी जनप्रतिनिधियों के मामले में यह आदेश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की एक पीठ ने दिया है। अपने आदेश में अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आवश्यकता होने पर हम समय-समय पर अपने आदेशों के अनुपालन की निगरानी कर सकते हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों/ विधायकों के खिलाफ 30 अगस्त को इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के हलफनामे पर असंतोष जाहिर किया और कहा कि केंद्र सरकार कोर्ट में अधूरी तैयारी के साथ आई है।
विशेष अदालतों के कामकाज पर उठाए सवाल
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय के वकील साजन पोवैय्या ने अदालत से आग्रह किया कि इस बात की भी जरूरत है कि यह देखा जाए कि विशेष न्यायालय वास्तव में काम कर भी रहे हैं या नहीं।
बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने दागी सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की सुनवाई के लिए 12 विशेष अदालतों के गठन के लिए केंद्र सरकार की योजना को मंजूरी दे दी थी। स्पेशल कोर्ट के गठन के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 7.80 करोड़ रुपए राज्यों को रिलीज करने को कहा था, ताकि अदालतों का गठन हो सके। कोर्ट ने एक मार्च तक विशेष अदालत गठित करने और उनके काम शुरू करने का आदेश सुनाया था।
केंद्र ने बताया था कि 1233 केस किए गए हैं ट्रांसफर
बता दें कि हलफनामे के जरिए केंद्र सरकार ने अदालत को जानकारी दी थी कि एमपी-एमएलए के खिलाफ अभी तक दिल्ली समेत 11 राज्यों से मिले ब्योरे के मुताबिक 1233 केस इन 12 स्पेशल फास्ट ट्रैक में ट्रांसफर किए गए हैं, जबकि 136 केसों का निपटारा किया गया है। फिलहाल 1097 मामले लंबित हैं। बाकी राज्यों में जहां सांसदों/ विधायकों के खिलाफ 65 से कम केस लंबित हैं, वह सामान्य अदालतों में फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह चलेंगे। इस संबंध में राज्यों को एडवायजरी जारी कर दी गई है। इतना ही नहीं इसके अलावा 12 फास्ट ट्रैक कोर्ट में 6 सेशन कोर्ट और पांच मजिस्ट्रेट कोर्ट भी हैं। तमिलनाडु से अभी तक जानकारी नहीं मिली है।
अदालत जवाब से असंतुष्ट
जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत ने 1 नवंबर 2017 को आपराधिक मामलों का जो ब्योरा मांगा था, वह उसे अभी तक मिला है। केंद्र सरकार ने जो जवाब दाखिल किया है, वो कागज का टुकड़ा भर है।