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समलैंगिकता पर बोले मोहन भागवत, हो-हल्ला करने की बजाए समाज उनकी व्यवस्था करे

आरएसएस के ‘भविष्य का भारत’ कार्यक्रम का आज तीसरा और आखिरी दिन था।

Sep 19, 2018 / 10:05 pm

Kapil Tiwari

Mohan Bhagwat

समलैंगिकता पर बोले मोहन भागवत, हो-हल्ला करने की बजाए समाज उनकी व्यवस्था करे

नई दिल्ली। आरएसएस के ‘भविष्य का भारत’ कार्यक्रम का आज तीसरा और आखिरी दिन था। अंतिम संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई ऐसे मुद्दों पर संघ की प्रतिक्रिय रखी, जिनको लेकर पिछले दिनों देश की सियासत खूब गर्माई थी। इनमें एससी-एसटी एक्ट, समलैंगिकता, अंतरजातीय विवाह, गौरक्षा, धारा 370, धारा 35ए जैसे कई मुद्दे शामिल थे। इनमें से समलैंगिकता ऐसा मुद्दा था, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। समलैंगिकता पर मोहन भागवत ने कोर्ट के फैसले का एक तरह से सम्मान करते हुए फैसले का समर्थन किया।

समलैंगिकता पर मोहन भागवत क्या बोले?

संघ प्रमुख ने कहा कि समाज में समलैंगिकता के कुछ लोगों का एक तबका है, जो हमारे समाज के ही अंदर है। इसलिए समाज को उनकी व्यवस्था करनी चाहिए। मोहन भागवत ने कहा कि इस मुद्दे पर हो हल्ला नहीं होना चाहिए और ना ही इससे कोई फायदा होना है। समाज बहुत बदला है इसलिए समाज स्वस्थ रहे ताकि वे (समलैंगिक) अलग-थलग पड़कर गर्त में न गिर जाएं। आपको बता दें कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को भारत में आपराधिक श्रेणी से बाहर कर दिया था।

‘अंतरजातीय विवाह करने में संघ के स्वंयसेवक आगे’

कार्यक्रम के आखिरी दिन मोहन भागवत ने अंतरजातीय विवाह को लेकर भी की बातें कहीं। उन्होंने कहा कि अंतरजातीय विवाह करने में संघ के स्वंयसेवक सबसे आगे रहते हैं। भागवत ने कहा कि अंतरजातीय विवाह का हम समर्थन करते हैं। मानव-मानव में भेद नहीं करना चाहिए। भारत में संघ के स्वयंसेवकों ने सबसे ज्यादा अंतरजातीय विवाह किया है। सबसे पहला अंतरजातीय विवाह संघ के स्वंयसेवक ने ही किया था, जिसे भीमराव अंबेडकर ने आशीर्वाद भी दिया था। समाज को अभेद दृष्टि से देखना जरूरी है। इससे हिंदू समाज नहीं बंटेगा। इसलिए हम सभी हिंदुओं को संगठित करने का प्रयास कर रहे हैं।

आरक्षण को संघ का समर्थन

मोहन भागवत ने आरक्षण को लेकर भी कई अहम बातें बोलीं। उन्होंने कहा कि सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए संविधान में जहां जितना आरक्षण दिया गया है, संघ का उसका समर्थन रहेगा। आरक्षण कब तक चलेगा, इसका निर्णय वही करेंगे जिनके लिए आरक्षण तय किया गया है। सामाजिक विषमता हटाकर सबके लिए बराबरी हो, इसलिए संविधान में प्रावधान किया गया है।

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