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राजनीति

टीबी की सस्ती दवाओं पर आखिर नहीं चली अमेरिकी दादागिरी

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की 26 सितंबर को हो रही उच्च स्तरीय बैठक में जारी होने जा रहे राजनीतिक घोषणापत्र में अब ट्रिप्स संबंधी छूट शामिल होगी

Sep 17, 2018 / 03:03 pm

Mukesh Kejariwal

medicines of TB

टीबी की सस्‍ती दवाओं पर नहीं चली अमेरिका की दादागिरी

नई दिल्ली। टीबी मरीजों के सस्ती दवा के हक को खत्म करने की अमेरिकी साजिश आखिरकार कामयाब नहीं हुई। भारत सहित कई विकासशील देशों का दबाव रंग लाया है। अब संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की ओर से आने वाले टीबी मसौदे को सुधार लिया गया है। ट्रिप्स (बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापारिक पहलू) संबंधी छूट को इसमें फिर शामिल कर लिया गया है। इससे भारत जैसे देशों की परेशानी दूर हो सकेगी जहां टीबी मरीजों की तादाद बहुत ज्यादा है।

इसी महीने 26 तारीख को संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठक में ‘टीबी के विरुद्ध युद्ध का राजनीतिक घोषणापत्र’ संशोधित मसौदा जारी होगा। केंद्र सरकार के वरिष्ठ सूत्रों के मुताबिक अब इस बैठक में भाग लेने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा भी पहुंचेंगे। मसौदे के प्रावधान और केंद्र सरकार की बेहद महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजना ‘आयुष्मान भारत’ की तैयारी की वजह से पहले वे इस बैठक में हिस्सा नहीं लेने वाले थे। बैठक में बड़ी संख्या में विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी भाग लेंगे। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र आम सभा की बैठक में विदेश मंत्री सुष्मा स्वराज भी भाग लेंगीं।

पिछले महीने ‘पत्रिका’ ने अपनी खबरों के जरिए बताया था कि 20 जुलाई को मसौदे से ट्रिप्स संबंधी छूटों को हटा दिया गया है। ये प्रावधान विकासशील देशों को छूट देते हैं कि कोई दवा पेटेंट की वजह से बहुत महंगी हो तो वे उन्हें अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रावधान में शामिल कर सकते हैं। ऐसे में कंपनियां इन्हें बेहद सस्ते में उपलब्ध करवा देती हैं। अमेरिका अपनी दवा कंपनियों के फायदे को देखते हुए इन प्रावधानों को हटाने पर अड़ा था। भारत के लोक स्वास्थ्य संगठनों ने भी इस मामले पर सरकार को गंभीरता से दखल देने की अपील की थी। टीबी के सबसे ज्यादा मरीज भारत में ही हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन ‘एमएसएफ’ (डॉक्टर्स विदाउट बोर्डर्स) ने भी इसे अमेरिकी दादागिरी करार दिया था। यहां तक कि खुद अमेरिका के डेढ़ दर्जन संगठनों ने इस संबंध में बदलाव की अपील की थी।

इस तरह मिलेगा भारत को लाभ –

नई दवाओं का जेनरिक उत्पादन संभव हो सकेगा

टीबी इलाज के लिए तकनीकी हस्तांतरण संभव होगा

अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मदद जारी रह सकेगी

क्यों बड़ी जीत

भारत ने वर्ष 2025 तक टीबी मुक्ति का लक्ष्य रखा है

दुनिया के सबसे ज्यादा 26 प्रतिशत मरीज भारत में ही हैं

भारत सरकार की प्रतिक्रिया

अंतरराष्ट्रीय समझौते में ऐसा प्रावधान होने से विकसित होने वाली नई टीबी दवाओं का लाभ गरीब मरीजों को भी मिल पाएगा। यह एक सामूहिक प्रयास था। हम लगातार अपने रुख पर कायम रहे।
– विकास शील, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव

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