डॉक्टर आर.के.सोलंकी वल्र्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे ………. डिप्रेशन के बाद ही अधिकतर सुसाइड के केसेस होते हैं। लोगों को यह पता होना चाहिए कि डिप्रेशन पूरी तरह से सही हो सकता है। इसका इलाज संभव है। जेनेटिक, कमजोर व्यक्तित्व या फिर पारिवारिक कलह, बेरोजगारी, आर्थिक संकट और विफलता डिप्रेशन का कारण बनती है। यही कारण है कि यंगस्टर्स में सुसाइड के केस अधिक हुए हैं। अधिकतर मामलों में देखा गया है कि अगर मरीज के व्यवहार पर ध्यान दिया जाए तो सुसाइड को रोका जा सकता है।
डॉ. आर.के.सोलंकी, मनोचिकित्सक
पहले लोगों में कोऑप्रेशन की भावना अधिक थी। अब लोगों में कॉपीटिशन बढ़ गया है। पैरेंटिंग भी सही नहीं हो रही है। बच्चे में पेशेंस नहीं है। छोटी-छोटी बातों पर मरने-मारने पर उतर जाते हैं। पहले ज्वाइंट फैमिली में बच्चा अपने पैरेंट से नहीं तो चाचा, ताऊ या सिब्लिंग से अधिक जुड़ा होता था। वे अपनी बातें उनसे शेयर कर अपनी समस्या का सामाधान पाता था। उनको हर परिस्थिति से गुजरने का अनुभव मिलता था, जो अब नहीं रहा है।
डॉ. सुनील शर्मा, मनोचिकित्सक, जयपुर सुसाइड की धमकी को हल्के में न लें इसका रोगी मनोरंजन वाली चीजों में आनन्द नहीं लेता है। उनसे दूर भागता है। हमेशा थकान महसूस करना और काम न करने की इच्छा बताना, निर्णय न ले पाना और खानपान की आदतों में अचानक बदलाव आना हो सकता है। साथ ही बात-बात में आत्महत्या के लिए धमकी देना और नाराज होकर गलत काम करना, अचानक से किसी बात पर रोने लगना और चिड़चिड़ा होना, नींद न आना यानी अनिद्रा का शिकार होना, स्लीपिंग पैटर्न बदलना आदि लक्षण हो सकते हैं।