दरअसल, सरकार इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण को बढ़ावा देकर भारत को इनका मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना चाहती है। दुनिया के ज्यादातर देश ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन घटाने के उपायों में जुटे हैं। इसके लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को लोगों की पहुंच में लाने की कोशिश की जा रही है। भारत सरकार की नई ईवी नीति भी इसी कोशिश का हिस्सा है। भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार है। पेट्रोल-डीजल के साथ यहां इलेक्ट्रिक कारों का बाजार भी तेजी से फल-फूल रहा है। देश में 2021-22 में 21,163 इलेक्ट्रिक कारें बिकी थीं, जबकि 2022-23 में 154 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ यह संख्या 53,843 हो गई। विदेशी कंपनियां आने के बाद न सिर्फ इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री का ग्राफ ऊपर जाएगा, भारत तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार बनेगा ऐसा अनुमान भी जताया जा रहा है। देश की सड़कों पर इलेक्ट्रिक कारें बढऩे से एक बड़ा फायदा यह भी होगा कि लगातार बढ़ते तेल आयात पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण को बढ़ावा देने की नीति की तरह इन कारों के खरीदारों के लिए प्रोत्साहन नीति की भी दरकार है। कर में छूट, सब्सिडी व कम पंजीकरण शुल्क जैसी रियायतों से यह संभव है। उन चुनौतियों से निपटना भी जरूरी है, जिनका स्वदेशी इलेक्ट्रिक कार बाजार सामना कर रहा है। इनमें से एक है – लीथियम-आयन बैटरी, जिनके लिए हम चीन व दक्षिण कोरिया पर निर्भर हैं। ये काफी महंगी हैं, जिससे कारों की लागत बढ़ जाती है। देश में ही इन्हें बनाने की संभावनाएं तलाशने के साथ चार्जिंग स्टेशन बढ़ाने पर भी ध्यान देने की जरूरत है। चीन में इलेक्ट्रिक कारों के करीब 18 लाख चार्जिंग स्टेशनों के मुकाबले भारत में अभी 12,146 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन हैं। ये सर्वाधिक 3,079 महाराष्ट्र में हैं, जबकि क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़े राज्य राजस्थान में 500 और सर्वाधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 582 स्टेशन ही हैं।