scriptभस्मासुर से बचने के लिए महादेव ने यहां ली थी शरण, रोचक है इतिहास, यहां त्रिशूल चढ़ाने का है खास महत्व | Mahadev had taken shelter here to escape from Bhasmasur know interesting history of Chauragarh Temple Pachmarhi | Patrika News
नर्मदापुरम

भस्मासुर से बचने के लिए महादेव ने यहां ली थी शरण, रोचक है इतिहास, यहां त्रिशूल चढ़ाने का है खास महत्व

प्राचीन स्थान पर मध्य प्रदेश के साथ साथ महाराष्ट्र और गुजरात से बड़ी संख्या में शिव भक्त दर्शन करने आते हैं। खास बात ये है कि, महादेव के दर्शन के लिए सभी भक्तों मंदिर की बेहद कठिन सीढियां चढ़ना पड़ता है।

नर्मदापुरमMar 08, 2024 / 09:00 pm

Faiz

Chauragarh Temple Pachmarhi

भस्मासुर से बचने के लिए महादेव ने यहां ली थी शरण, रोचक है इतिहास, यहां त्रिशूल चढ़ाने का है खास महत्व

महाशिवरात्रि के अवसर पर देशभर के शिवभक्त भगवान शिव की आराधना में लीन हैं। देश के सभी शिवालयों में भक्तों का तांता लगा है। इस अवसर पर हम आपको मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले में स्थित एक ऐसे स्थानके बारे में बता रहे हैं, जहां भगवान महादेव से जुड़ा एक रोचक इतिहास जुड़ा है। धार्मिक मान्यताओं के तहत महादेव ने भस्मासुर नामक असुर से बचने के लिए इस स्थान पर शरण ली थी। मौजूदा समय में यहां एक प्राचीन मंदिर है, जिसमें महाशिवरात्रि के अवसर पर बड़ी संख्या में शिवभक्त दर्शन करने आते हैं। इसी दिन यहां साल में सिर्फ एक बार मेला भी लगता है। इस प्राचीन स्थान पर मध्य प्रदेश के साथ साथ महाराष्ट्र और गुजरात से बड़ी
संख्या में शिव भक्त दर्शन करने आते हैं। खास बात ये है कि, महादेव के दर्शन के लिए सभी भक्तों मंदिर की बेहद कठिन सीढियां चढ़ना पड़ता है।


पचमढ़ी के पहाड़ों में स्थित चौरागढ़ मंदिर का इतिहास युगों पुराना बताया जाता है। इसी स्थान से कई किवदंतिया भी जुड़ी हैं। इनमें से एक किवदंती ये भी खासा प्रचलित है कि भगवान महादेव ने भस्मासुर से बचने के लिए इसी पहाड़ी में शरण ली थी। एक अन्य किवदंती ये भी है कि इस पहाड़ी पर चोरा बाबा ने कई वर्षों तक तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें इसी पहाड़ी पर दर्शन दिए थे। तभी से इस पहाड़ी को चोरागढ़ के नाम से जाना जाने लगा है। इसके बाद ही इस स्थान पर भोलेनाथ के मंदिर का निर्माण कराया गया था।

 

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मंदिर में त्रिशूल चढ़ाने की अनोखी परंपरा

Chauragarh Temple Pachmarhi

जिले के पंचमढ़ी में स्थित इस प्रसिद्ध चौरागढ़ मंदिर में त्रिशूल चढ़ाने का भी खास महत्व है। यहां हर साल अपनी मनोकामनाएं लेकर आने वाले भक्त त्रिशूल चढ़ाते हैं। ये भी मान्यता है कि जब चोरा बाबा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे। उस समय भगवान शिव अपना त्रिशूल इसी स्थान पर छोड़ कर चले गए थे। इसी मान्यता के तहत यहां अपनी मुरादें लेकर आने वाले भक्त मंदिर में चढ़ावे के तौर पर त्रिशूल चढाते आ रहे हैं। बता दें कि चौरागढ़ मंदिर भूतल से करीब 4200 फीट ऊंची खड़ी पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 1300 से अधिक सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।

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