एक आंकलन के अनुसार वायुसेना (आईएएफ) को अपनी अभीष्टक्षमता प्राप्त करने के लिए न्यूनतम 42 लड़ाकू विमानों की आवश्यकता है, लेकिन 2000 से 2012 के बीच कई वायु दुर्घटनाओं के चलते इसकी वास्तविक ताकत 34 स्क्वाड्रन तक सीमित रह गई। सबसे पहले 126 लड़ाकू विमान खरीदने का मूल प्रस्ताव अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार के दौरान रखा गया था। 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्टस की खरीद के लिए अंततः 2007 में निविदा जारी की गई। रफाल और एक अन्य जेट टाइफून को भारत ने अपनी जरूरतों के उपयुक्त पाया। 2012 रफाल के निर्माता दासू से अनुबंध वार्ता शुरू हुई। आरएफपी अनुपालन और मूल्य संबंधी कई मुद्दों पर समझौते की कमी के कारण 2014 तक सौदे की शर्तों को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका।
प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण दोनों पक्षों के बीच चिंता का प्राथमिक मुद्दा बना रहा। दासू एविएशन भी भारत में 108 विमानों के उत्पादन के गुणवत्ता नियंत्रण की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था। 2015 में फ्रांस की अपनी यात्रा के दौरान भारत और फ्रांस ने समझौते की घोषणा की गई। तब जारी किए गए संयुक्त बयान के मुताबिक दोनों देश दासू एविएशन द्वारा तय की गईं आपसी शर्तों द्वारा विमानों की आपूर्ति के लिए एक अंतर-सरकारी समझौते का निष्कर्ष निकालने के लिए सहमत हुए।
बताया जा रहा है कि यह सौदा करीब 58,000 करोड़ रुपए का है। कांग्रेस का दावा है कि यूपीए सरकार के दौरान एक राफेल फाइटर जेट की कीमत लगभग 600 करोड़ रुपए तय की गई थी जबकि मोदी सरकार के दौरान एक राफेल करीब 1600 करोड़ रुपए का पड़ रहा है। कीमत में इतने बड़े अंतर को लेकर कांग्रेस केंद्र सरकार पर आरोप लगा रही है कि इस सौदे में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है।
सरकार का कहना है कि यूपीए सरकार के दौरान केवल सिर्फ विमान का सौदा हुआ था जबकि स्पेयर पार्ट्स, हैंगर्स, ट्रेनिंग सिम्युलेटर्स, मिसाइल या हथियार खरीदने जैसी कोई बात समझौते में शामिल नहीं थी।राफेल के साथ फ्रांस मेटिओर और स्कैल्प मिसाइलें भी भारत को देगा। ये दोनों दुनिया की सबसे मारक मिसाइलों में शुमार के जाती हैं। सरकार का पक्ष है कि वर्तमान समझौता भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल का समर्थन करता है। सौदे में ऑफ़सेट प्रस्ताव में परिष्कृत डिजाइन तकनीक के हस्तांतरण का प्रावधान भी शामिल है। यह इस समझौते का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है। इसके मुताबिक, फ्रांस इस सौदे की कुल राशि का करीब आधा भारत में रक्षा उपकरणों और इससे संबंधित चीजों में निवेश करेगा।