आपको बता दें कि गुजरात राज्य के वित्तीय नियम 1971 और जनरल फाइनेंशियल रूल्स 2005 के मुताबिक किसी भी स्पेशल स्कीम के तहत अगर बजट जारी हो तो वित्तीय वर्ष खत्म होने के अधिकतम 12 महीने के भीतर उसका हिसाब-किताब सहित उपयोगिता प्रमाणपत्र शासन में जमा करना होता है। ताकि पता चल सके कि धनराशि का सही इस्तेमाल हुआ है या नहीं। नियम के मुताबिक जब तक कोई विभाग या सरकारी संस्थान जारी राशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं देती, तब तक उसे दूसरी राशि जारी नहीं की जाएगी, लेकिन गुजरात में सारे नियम-कायदों को तोड़ दिया गया है।
धनराशि में गोलमाल की आशंका
कैग ने जांच के दौरान पाया कि 31 मार्च 2017 तक हुई गुजरात में पिछले 16-17 वर्षों से बहुत से काम का हिसाब-किताब गायब हैं। संबंधित मद में खर्च धनराशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र(यूसी) ही मौजूद नहीं है। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक कुल 2528 कार्यों के लिए जारी 228.03 करोड़ रुपए का हिसाब किताब पिछले आठ साल से अधिक समय से लटका हुआ है। इसी तरह 64 कार्यों के लिए जारी 250.96 करोड़ की धनराशि का उपयोगिता प्रमाणपत्र छह से आठ साल बीत जाने पर भी जमा नहीं हुआ। वहीं 166.50 करोड़ के 157 उपयोगिता प्रमाणपत्र चार से छह वर्ष बीत जाने पर भी जमा नहीं हुए। वहीं 942.45 करोड़ के उपयोगिता प्रमाणपत्र एक से दो साल के बीच के लंबित हैं।
यहां ज्यादा गड़बड़ी
बता दें कि 2140 करोड़ की धनराशि में से 41 प्रतिशत हिस्सा नगर विकास विभाग के पास था। करीब 870.23 करोड़ के कार्यों के उपयोगिता प्रमाणपत्र विभाग ने उपलब्ध नहीं कराए हैं। इसी तरह शहरी आवासीय विभाग ने 383.13 करोड़ के प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं कराए हैं। ऑडिट के दौरान पता चला कि 158 मामलों में 14.41 करोड़ की धनराशि का गबन हुआ, मगर कार्रवाई नहीं की गई।