मई 2018 में किया था कमेटी का गठन पश्चिम यूपी के जिलों की सीमाएं हरियाणा राज्य से मिली होने के कारण जाट समाज का भी प्रदेश के समाज को समर्थन मिलता रहा है। भाजपा सरकार ने मई 2018 में जाट आरक्षण को लेकर एक कमेटी का गठन किया था। इसमें अभी तक कमेटी की रिपोर्ट नहीं आई है। लेकिन इतना तय है कि भाजपा लोकसभा चुनाव 2019 से पहले जाट आरक्षण को लेकर कोई न कोई राजनीतिक दांव जरूर खेलेगी। उत्तर प्रदेश की करीब 17 लोकसभा सीटें इस बिरादरी की वोटों से प्रभावित होती हैं।
जाट नेता बोले, आरक्षण देना मजबूरी जाट आरक्षण संघर्ष समिति के यशपाल मलिक कहते हैं कि जाटों को आरक्षण देना सरकार की मजबूरी है। चूंकि आरक्षण की मांग काफी समय से चली आ रही है और इसकी अनदेखी केंद्र और प्रदेश सरकारें अपने स्तर से करती रही हैं, लेकिन अब अनदेखी नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि पहले केंद्र में अलग दल और प्रदेश में अलग दल की सरकारें होती थी। इसका लाभ दोनों सरकारें उठाती थी और आरक्षण की गेंद एक-दूसरे के पाले में फेंकते रहते थे। भाजपा अब ऐसा नहीं कर सकती। इस समय तो केंद्र में भी भाजपा है और प्रदेश में भी। फिर भाजपा ऐसे में किसे दोषी ठहरा सकती है, इसलिए जाटों को आरक्षण देना केंद्र और प्रदेश सरकार दोनों की मजबूरी है।
क्या है जाट आरक्षण हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुड्डा सरकार ने जाट और अन्य चार जातियों को विशेष रूप से पिछड़ी जातियों में शामिल किया था। पिछले साल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने जाटों को 10 फीसदी आरक्षण देने के सरकार की सिफारिश को खारिज कर दिया। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने नौ राज्यों के जाटों को ओबीसी कोटे में आरक्षण देने की मांग ठुकरा दी थी। इनमें से यूपी भी था। इस आंदोलन में कोई साफ नेतृत्व नहीं दिख रहा था और न ही कोई सरकार की ओर से समाधान के लिए ही कोई नेतृत्व करता दिखाई दे रहा था। भाजपा सरकार आने के बाद दालत के फैसले पर अमल करते हुए इसकी आवश्यकता परखने के लिए कमेटी का गठन कर दिया गया। अब कमेटी की रिपोर्ट पर ही जाट आरक्षण का भविष्य टिका हुआ है, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद जाटों में उम्मीद जगी है कि उन्हें आरक्षण मिलकर रहेगा।