scriptकभी दिल्ली की सड़कों पर बीनते थे कचरा, आज बदल देते हैं दूसरों की दुनिया | Motivational story of Vicky Roy Photographer in Hindi | Patrika News
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कभी दिल्ली की सड़कों पर बीनते थे कचरा, आज बदल देते हैं दूसरों की दुनिया

1999 में जब विक्की रॉय 11 साल के थे तो उन्होंने घर से भागने का फैसला किया। उनकी पॉकेट में 900 रुपए थे, जो कि उन्होंने अपने अंकल की जेब से चुराए थे। वह भागकर दिल्ली आ गए।

जयपुरOct 17, 2018 / 07:21 pm

सुनील शर्मा

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विक्की रॉय आज फोटोग्राफी की दुनिया में खास पहचान रखते हैं लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया गांव में गरीब परिवार में जन्मे विक्की रॉय के पैरेंट्स जब काम की तलाश में चले गए तो उन्हें ग्रैंड पैरेंट्स के पास छोड़ दिया गया। 1999 में जब वह 11 साल के थे तो उन्होंने वहां से भागने का फैसला किया। उनकी पॉकेट में 900 रुपए थे, जो कि उन्होंने अपने अंकल की जेब से चुराए थे। वह भागकर दिल्ली आ गए।
स्टेशन पर उन्हें कुछ स्ट्रीट चिल्ड्रन ने रोते हुए देखा तो वे उन्हें सलाम बालक ट्रस्ट (एसबीटी) में ले गए, जो कि मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बॉम्बे’ की कमाई से बना है। एक सुबह जब दूधवाले के लिए गेट खोले गए तो वह दूसरी बार भाग निकले। वह उन्हीं बच्चों से मिले जो कि उन्हें रेलवे स्टेशन पर मिले थे फिर उन्होंने अन्य बच्चों के साथ कूड़ा-कचरा उठाने का काम शुरू कर दिया। उन्होंने वॉटर बोटल्स कलेक्ट की और उन्हें पांच रुपए में बेच दिया। उसके बाद वह अजमेरी गेट के पास स्थित रेस्तरां पर बर्तन धोने का काम करने लगे।
इस बीच वह एसबीटी के एक वॉलेंटियर से मिले, जिसने उन्हें बताया कि आपको स्कूल में होना चाहिए। उसके कहने पर वह एक केंद्र अपना घर में शामिल हो गए। रॉय ने 10वीं बोर्ड की परीक्षा 47 प्रतिशत अंकों से पास की। उन्हें महसूस हुआ कि वह स्टडी में इतने अच्छे नहीं हैं। इसलिए उन्हें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग जॉइन करने की सलाह दी गई, जहां वह कम्प्यूटर और टीवी रिपेयरिंग की ट्रेनिंग ले सकते हैं। फोटोग्राफी के प्रति उनका मन यहीं से बना, जब फोटोग्राफी ट्रेनिंग के लिए दो बच्चे इंडोनेशिया और श्रीलंका गए।
तब उन्हें पता नहीं था कि उनकी लाइफ बदलने वाली है। उस समय ब्रिटिश फिल्ममेकर डिक्सी बेंजामिन ट्रस्ट में डॉक्यूमेंट्री बनाने आए थे। विक्की उनके असिस्टेंट बन गए और फोटोग्राफर के रूप में अपनी जर्नी शुरू की। फिर उन्हें अनय मान के रूप में अच्छे टीचर और मेंटर मिल गए। 2007 में उन्होंने ‘स्ट्रीट ड्रीम्स’ नाम से प्रदर्शनी लगाई। इसकी सफलता के बाद उन्होंने कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया और वह कामयाबी के शिखर की ओर बढ़ते गए।

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