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महिला होने के कारण नहीं मिली थी नौकरी, खड़ा कर दिया खुद का बिजनेस एम्पायर

बेंगलूरु में जन्मी किरण को बेंगलूरु में इसलिए जॉब नहीं मिली कि वह महिला थीं। उन्हें यह कहकर इनकार कर दिया जाता था कि ब्रूअर का काम पुरुष करते हैं, महिला नहीं। फिर किरण ने खुद बिजनेस करने की सोची।

जयपुरMar 24, 2019 / 04:36 pm

सुनील शर्मा

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दुनिया में ऐसी बहुत सी शख्सियत हैं, जिन्होंने आम सोच से परे जाकर अपनी आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों की परवाह न करते हुए छोटा सा कारोबार शुरू किया और आज वे मशहूर बिजनेस पर्सनैलिटी में शुमार हैं। बायो फार्मास्युटिकल कंपनी बायोकॉन की फाउंडर व चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ भी ऐसी ही शख्सियत हैं। एक समय ऐसा भी था जब महिला होने के नाते कई लोग उनके साथ काम करने के लिए तैयार नहीं थे।

बेंगलूरु में जन्मी किरण ने जूलॉजी में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद इन्होंने ‘मॉल्टिंग और ब्रूइंग’ विषय पर ऑस्ट्रेलिया में बैलेरैट यूनिवर्सिटी से 1975 में हायर एजुकेशन की। इस दौरान उन्होंने मेलबर्न की ही कार्लटोन और यूनाइटेड ब्रुअरीज में ट्रेनी ब्रूअर के रूप में काम किया। उन्होंने कुछ समय तक कोलकाता के जूपिटर ब्रूअरीज लिमिटेड में टेक्निकल कंसल्टेंट के तौर पर काम किया। उन्हें बेंगलूरु में इसलिए जॉब नहीं मिली कि वह महिला थीं। उन्हें यह कहकर इनकार कर दिया जाता था कि ब्रूअर का काम पुरुष करते हैं, महिला नहीं। फिर किरण ने खुद बिजनेस करने की सोची।

1978 में बेंगलूरु में एक गैरेज किराये पर लेकर दस हजार रुपए में अपनी कंपनी शुरू की। शुरुआती दौर में उन्हें अपनी कम उम्र, जेंडर और बिना परखे गए बिजनेस मॉडल के कारण क्रेडिबिलिटी संबंधी तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि उन्हें उस समय ऐसे लोग ढूंढना मुश्किल हो गया था, जो फीमेल बॉस के साथ काम कर सकें। 40 कैंडिडेट से मिलने के बाद वह अपने पहले स्टाफ मेंबर को हायर कर सकीं, वह भी एक रिटायर गैरेज मैकेनिक। अपने बिजनेस के लिए शुरूआती पूंजी जुटाना भी उनके लिए पहाड़ खोदने जैसा था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

आखिरकार एक बैंक उन्हें लोन देने को तैयार हो गया। धीरे-धीरे लोगों का भरोसा उनके बिजनेस पर बढऩे लगा। उसके बाद किरण नहीं रुकीं। अपनी मेहनत और लगन की बदौलत वह अपनी कंपनी को लगातार आगे बढ़ाती गईं। आज वह सफल उद्यमी हैं और उन्हें कई अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।

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