Live: बन गया इतिहास, धुल गया मन का मैल, 24 साल बाद माया की तारीफ में मुलायम ने पढ़े कसीदे
– भारतीय राजनीति की दुलर्भ तस्वीर- मैनपुरी की रैली में माया-मुलायम के मन का धुल गया मैल- गेस्ट हाउस कांड के बाद एक दूसरे की दुश्मन बन गयी थीं दोनों पार्टियां
बन गया इतिहास, धुल गया मन का मैल, 24 साल बाद माया की तारीफ में मुलायम ने पढ़े कसीदे
मैनपुरी. भारतीय राजनीति में एक इतिहास बन गया। दशकों से बनी नफरत की दीवार टूट गयी। लाखों लोगों के दिलों का मैल धुल गया। इस ऐतिहासिक पल का गवाह बना मैनपुरी का मैदान। देश और राज्य में ऐसी एतिहासिक रैली अब तक नहीं हुई। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेता ढाई दशक बाद शुक्रवार को 24 साल बाद एक मंच पर मिले। मायावती और मुलायम सिंह जब आमने सामने हुए तो दोनों ने एक दूसरे का गर्मजोशी से स्वागत किया। नेताजी मुस्कराए। इसके बाद मायावती ने खड़े होकर नेताजी का स्वागत किया। इसके साथ ही हजारों की भीड़ ने तालियों की गडगड़़ाहट के साथ दोनों नेताओं के इस एतिहासिक मिलन का स्वागत किया। मायावती के बगल की कुर्सी पर मुलायम सिंह बैठे। मायावती के दूसरी तरफ अखिलेश यादव बैठे। मंच पर आकर तेजप्रताप यादव ने मुलायम के पैर छुए। बाद में जब तीनों नेता एक साथ खड़े हुए तो कौतुहल, रोमांच और माया-मुलायम जिंदाबाद के नारों से पूरा वातावरण गूंज उठा।
भाजपा से निपटने की चुनौती सपा-बसपा की मित्रता की नींव 90 के दशक में रखी गई थी। उस वक्त कांशीराम जिंदा थे। तब भी भाजपा से निपटने की चुनौती थी दोनों दलों के लिए और आज भी जब भाजपा ने इन दोनों दलों के लिए मुश्किलें खड़ीं की हैं तब नब्बे के दशक के चुनावी नारे -मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्रीराम की तर्ज पर आज माया और अखिलेश के लिए नारे गूंज रहे हैं। उस दौर मेें मुलायम और कांशीराम संयुक्त चुनावी रैलियां कर रहे थे। एक साथ चुनावी रणनीति बना रहे थे। आज भी कमोबेश यही हालत है।
1995 में दोनों दल थे साथ 1995 में सपा-बसपा ने यूपी विधानसभा की क्रमश: 256 और 164 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था। सपा तब 109 सीट जीतने में कामयाब रही जबकि 67 सीटों पर बसपा को सफलता मिली थी। लेकिन, 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों पार्टियां अलग हो गईं। इससे सपा-बसपा में इतनी तल्खियां बढ़ गयी थीं कि दोनों ही दल एक दूसरे को अपना कट्टर प्रतिद्धंदी मानने लगे थे। इस कांड के बाद मुलायम और मायावती में कोई संवाद तो दूर, यह दोनों नेता कभी एक दूसरे के सामने भी नहीं पड़े। लेकिन अब राजनीतिक मजबूरी है कि दोनों दलों के नेता मंच साझा करने को तैयार हैं।
तकरार में बाद फिर एक साथ 2007 में जहां बहुजन समाज पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल कर अपनी सरकार बनाई, तो 2012 में सपा ने। 2014 में मोदी लहर ने सपा व बसपा दोनों को काफी कमजोर कर दिया। भाजपा ने 2017 विधान सभा चुनाव में दोनों पार्टियों को और तगड़ा झटका दिया। अब सपा-बसपा एक बार फिर साथ हैं।
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