डाॅ0 शम्भुनाथ ने अपने संस्मरणों को साझा करते हुये बताया कि बचपन में वे पहले मिट्टी पर आकृति बनाते थे, फिर पेड़ की टहनी से चित्रकारी करते-करते पेंसिल से दीवारों पर चित्र बनाने लगे। उनके पिता ने दीवार पर चित्र न बनाने के लिये रंग और कागज खरीदने को ‘चार आने पैसे’ देकर कहा कि दीवार पर चित्रकारी न करके विधिवत कागज पर चित्रकारी करें। प्रशासनिक सेवा में आने के बाद व्यस्तता के कारण चित्रकारी का शौक थमने लगा पर सेवा से अवकाश प्राप्ति के बाद फिर से शुरूआत की। उन्होंने कहा कि ‘जब दोबारा शुरूआत की तो ऐसा लगा जैसे रंग और रेखायें फिर से मुझे पुकारने लगी।’
कार्यक्रम का संचालन पूर्व प्रशासनिक अधिकारी आर0के0 ओझा ने किया। तीन दिवसीय चित्रकला प्रदर्शनी में 28 नवम्बर को चित्रकला एवं कविता के अन्तर्सम्बंध पर एक संगोष्ठी होगी तथा 29 नवम्बर को समापन होगा जिसमें सुप्रसिद्ध चित्रकारों द्वारा रेखांकन एवं चित्रकला का जीवंत प्रदर्शन किया जायेगा। यह प्रदर्शनी पूर्वान्ह 11.30 बजे से सायं 6.00 बजे तक दर्शकों के लिये खुली रहेगी।