जानकारी के अनुसार मत्स्य विभाग मछली पकडऩे का साल में ठेका देता है। इससे विभाग को करोड़ों रुपए की आय होती है। सितम्बर से मछली पकडऩे पर छूट दी जाएगी। इसको लेकर एक सितम्बर से मार्च 2020 तक 2 करोड़ 60 लाख रुपए का ठेका दिया गया है। रावतभाटा डेम से भारतीय मेजर कार्प की कतला, म्रिगल, रोहू कलोट मछली पकड़ी जाती है। ये मछलियां प्रतिदिन औसतन 25 क्विंटल पकड़ में आती हैं। इसकी बाजार कीमत 100 से 150 रुपए प्रति किलो है। वहीं केट फिश में लाची, संवल, सिंघाड़ा व पाबदा मछली पकड़ी जाती है। ये मछलियां महंगी होती हैं।
विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पाबदा मछली कम पाई जाती है। यह प्रतिदिन मात्र औसतन 40 क्विंटल पकड़ी जाती है। ये मछलियां विदेशों में मंगाई जाती है। यह भारत में 500 से 1 हजार रुपए प्रतिकिलो बिकती है। अब विभाग ने इसका उत्पादन बढ़ाने पर अनुसंधान शुरू किया है।
एक दूसरे को खा जाते हैं पाबदा मछली आक्रमक होती है। अंडों से जैसे ही बच्चे निकलते हैं तो बच्चे एक-दूसरे को खा जाते हैं। इसके बीज बढ़ाने पर अनुसंधान किया जा रहा है। इसके आक्रामक स्वभाव को कम करने के भी प्रयास किए जा रहे हैं ताकि इसके बच्चे एक-दूसरे को न खाएं। आक्रामक स्वभाव में कमी आने सेे उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। फिलहाल प्रयोग किया जाएगा। यदि प्रयोग सफल रहा तो जयपुर मुख्यालय पर उच्चाधिकारियों को अवगत करा तालाब में उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा।
Read more : जब मंत्री बोले- जो पार्किंग और ट्रैफिक के आड़े आए उसे उखाड़ फेको…… यही से अरब देशों में जाएंगी पावदा का उत्पादल बढऩे पर विभाग पावदा मछलियों का यहीं से अरब सहित अन्य देशों में भेजने का प्रयास करेगा। इससे उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ राजस्व भी बढ़ेगा। स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा।
माशीर मछली पकडऩे पर रोक उधर जयपुर मुख्यालय ने माशीर मछली पकडऩे पर रोक लगा रखी है। ये मछलियां काफी कम हो गई हैं। इनकी कमी से पानी में प्रदूषण हो रहा है। इस संबंध में हाल ही जयपुर मतस्य विभाग ने निर्देश जारी किए हैं।
पाबदा मछली की देश के साथ-साथ अरब देशों में भी अच्छी मांग है। रावतभाटा की मछली दुबई तक भी जाती है। अत: इनका उत्पादन बढ़ाने को लेकर अनुसंधान किया जा रहा है। यदि अनुसंधान सफल रहा तो व्यापक स्तर पर उत्पादन बढ़ाया जाएगा।
इरशाद खान, परियोजना अधिकारी, मत्त्य विभाग, रावतभाटा