उल्लेखनीय है कि खनिज न्यास मद से पिछले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एक काले रंग की खास तरह की डिजिटल बस सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रचार के लिए जिला प्रशासन को मिली थी। बस के बाहरी सतह पर बड़ी एलईडी स्क्रीन लगी थी, जबकि अंदर कम्प्यूटर सहित हाई-टेक सिस्टम लगा हुआ था। जिससे कि चलित बस के जरिए ऑडियो वीडियो माध्यम से सरकारी योजनों पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्मों को भी दिखाई जाती थी। यह सभी सरकारी की छवि चमकाने वाली योजना के जरिए किया गया था। जिसे संचालित करने के लिए १८ लोगों की टीम ने जिले मे काम किया था कर्मचारियों को डीएम सॉल्यूशन और एमपीकॉन नामक कंपनी द्वारा काम दिया गया था। लेकिन आचार संहिता लगने के बाद सितंबर २०१८ से यह बस कलेक्टोरेट परिसर में ही खड़ी कर दी गई थी। जिसके कुछ दिनों बाद यह बस गायब हो गई है। प्रदेश में सरकार भी बदल गई। इसमें काम कर चुके कर्मचारियों की मानें तो बस यूपी जा चुकी है। जहां से अब वापस नहीं आएगी। बस की लागत ३० लाख रुपए होने की जानकारी मिली है। जिसके संचालन के लिए भी भारी भरकम राशि खर्च किए जाने की सूचना है। वर्तमान में बस और इसकी प्रदायकर्ता कंपनी रफूचक्कर हो चुकी है। विधानसभा चुनाव के समय आचार संहिता लग जाने के कारण इस बस का उपयोग काफी कम समय के लिए ही हो सका था।
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डीएम सॉल्यूशन कंपनी के लिए बस संचालन में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्य कर चुके विनोद कुमार कहते हैं कि पिछले वर्ष अगस्त से सितंबर २०१८ तक बस दो महीने तक चली। इसका मकसद सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार करना ही था। हमने जिला प्रशासन से समन्वय बिठाकर कंपनी के लिए काम किया। जूनियर मैनेजर सागर भारद्वाज सहित हमारी १८ लोगों की टीम थी। सभी का मिलकार कुल आठ से नौ लाख रुपए सैलेरी के पैसे अब भी अटके हुए हैं। कंपनी के प्रमुख अमित तिवारी ने फोन उठाना बंद कर दिया है। हम सभी ने कलेक्टर से सैलेरी दिलवाने कि मांग की है। हममें से कई भिलाई, रायपुर में निवासरत हैं।
-बस को सर्वीसिंग के लिए भेजा गया है। जोकि कुछ दिनों बाद वापस आएगी। कंपनी को पूरे पैसों का भुगतान अब तक नहीं किया गया है। कर्मचारियों के वेतन भुगतान का मामला कंपनी का है- जितेन्द्र नागेश, पीआरओ