पहले पूरा मामला समझिए
कटनी के खनन कारोबारी आनंद गोयनका मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका को मध्य प्रदेश की तत्कालीन दिग्विजय सरकार के कार्यकाल में 1994 से 2014 तक की अवधि के लिए 48.562 हेक्टेयर भूमि पर खनिज करने का पट्टा मिला था। लेकिन साल 2000 में वन मंडल अधिकारी कटनी के पत्र के आधार पर कलेक्टर कटनी ने आदेश पारित कर लेटेराइट फायर क्ले और अन्य खनिज के खनन पर रोक लगा दी थी और साल 1991-92 के दौरान सागौन का पौधारोपण किया गया था। लेकिन आरोप है कि अभी भी खनन कारोबारी की नजर इस जमीन पर बनी हुई है और वो इसे हासिल करने के लिए अफसरों के साथ मिलकर साजिश रच रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में है मामला
आरोप ये भी है कि शासन ने जब इस वन भूमि पर खनन से रोक लगाई तो खनन माफिया ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया। राजस्व अधिकारियों से सांठ-गांठ और दस्तावेजों में हेरफेर कर खनन कारोबारी हाईकोर्ट से राहत पाने में सफल रहे। हाईकोर्ट द्वारा प्रदान की गई राहत के खिलाफ शासन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जो आज भी विचाराधीन है। खनन कारोबारी एक बार फिर मामले में सक्रियता दिखाते कुछ भ्रष्ट अफसरों से सांठ-गांठ कर सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका को वापस लेने की कोशिश में है।
प्रदेश में सिर्फ ग्राम झिन्न का सर्वे क्यों?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित साधिकार समिति (सीईसी) द्वारा मध्य प्रदेश राज्य की सभी विवादित भूमियों का सर्वे कराकर जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया था। लेकिन खनन माफिया गोयनका बंधुओं ने वन विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत कर सिर्फ ग्राम झिन्ना जिला कटनी का सर्वे कराया। आरोप लगाए जा रहे हैं कि करोड़ों रुपए का लेन-देन हुआ है। क्योंकि सर्वे सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मध्य प्रदेश में करने कहा है।
निष्पक्ष जांच से सामने आएंगे असली चेहरे
शिकायतकर्ता के मुताबिक यदि जिम्मेदार अफसरों की मंशानुसार शासन उक्त याचिका को सुप्रीम कोर्ट से वापस लेता है तो वन क्षेत्र में खनन से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा। साथ ही वन्य प्राणी भी विस्थापित होंगे। इस पेचीदा मामला में प्रदेश के वर्तमान वनमंत्री को भी अंधेरे में रखा गया है। अगर वास्तविक तथ्यों की सही जांच हो तो अनेक अधिकारियों का असली चेहरा सामने आ जाएगा।