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कानपुर के पीओके में 15 साल से नहीं बजी शहनाई, बैलगाड़ी से लखनऊ जाएंगे ग्रामीण

6 सौ आबादी वाले इस गांव में सड़क, खड़ंजा, स्वच्छ पेयजल और एक भी शौचालय नहीं है, सांसद-विधायक-प्रधान कोई नहीं सुनता फरियाद

कानपुरAug 29, 2017 / 01:57 pm

Hariom Dwivedi

Simmanpur POK Village
कानपुर. आजादी के सत्तर साल बीत जाने के बाद आज भी ऐसे सैकड़ों गांव हैं, जहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। कानपुर की नरवल तहसील के ब्लॉक भीतरगांव का सिम्मरनपुर गांव ( पीओके ) बदहाली का दंश झेल रहा है। छह सौ आबादी वाले इस गांव में सड़क, खड़ंजा, स्वच्छ पेयजल और एक भी शौचालय नहीं है। इसके चलते कोई भी इस गांव में अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता। 15 साल बीत गए, लेकिन गांव में शहनाई नहीं बजी। इस वक्त करीब सौ से अधिक युवा कुवारे हैं, वहीं पचास से ज्यादा की उम्र 50 के पार हो गई है। गांव के बाहर पान की दुकान चलाने वाले सर्वेश कहते हैं कि हमने जाति-समाज से उठकर इस बार भाजपा को वोट देकर देवेंद्र सिंह भोले को सांसद चुना, लेकिन उन्होंने हमारी फरियाद नहीं सुनी। बावजूद विधानसभा में हमारे गांव से भाजपा के कैंडिडेट्स अभिजीत सिंह सांगा को अस्सी फीसदी मत मिले, विधायक बनने के बाद वो भी कभी सुध लेने नहीं आए।
इसलिए गांव का नाम बदल दिया
सिम्मरनपुर के लोगों ने योगी सरकार बनने के बाद खुशी में झूमे थे। उन्हें उम्मीद थी की बदहाल और बीमार गांव को सीएम आजादी दिलाएंगे। इसी के चलते गांववालों ने स्थानीय विधायक और नरवल एसडीएम के पास जाकर अपने गांव का विकास कराए जाने की मांग की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। सर्वेश बताते हैं कि हमने सीएम को ट्वीट कर गांव की तस्वीर के साथ हकीकत की जानकारी दी, पर वहां से कोई रिसपॉन्स नहीं मिला। इसी के बाद गांववालों ने चौपाल लगाकर कर सिम्मरनपुर का नाम बदलकर पीओके रख दिया है। सर्वेश कहते हैं कि उद्योग मंत्री सतीश महाना, कपड़ा मंत्री सत्यदेव पचौरी, जेलमंत्री जयकुमार जैकी के साथ ही कानपुर के डीएम और सीडीओ को लिखित शिकायत कर विकास की मांग की।

गांव में एक भी टॉयलट नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी रविवार को देश को संबोधित करते हुए बताया था कि 60 से 70 फीसदी टॉयलटों का गांवों में निर्माण करा दिया गया है, लेकिन सिम्मरनपुर से पीओके घोषित किए गए गांव में एक भी टॉयलट नहीं बना। शंकुतला देवी कहती हैं कि पति की उम्र 70 के पार हो गई है और वो अब चल-फिर नहीं पाते। टॉयलट नहीं होने के चलते उन्हें हम अकेले उठाकर गांव के बाहर शौच क्रिया के लिए ले जाते हैं। सुखदेवी ने बताया कि आसपास के हर गांव में टॉयलेट बन गए हैं, लेकिन हमारे गांव में प्रधान ने अभी एक ईंट तक नहीं लगवाई। शाम के वक्त खेत में शौच जाने के वक्त अराजकतत्व गलत नजर रखते हैं और अश्लील कमेंट कर परेशान करते रहते हैं।
बैलगाड़ी से लखनऊ जाने की तैयारी
गांव में विद्युत विभाग ने पंद्रह साल पहले खंभे जरूर लगा दिए थे, लेकिन उनमें आज तक तार नहीं लगाया गया। गांव में बिजली नहीं होने के चलते स्कूली बच्चे सड़क के उस पार जाकर पढ़ने को मजबूर हैं। सर्वेश कहते हैं कि गांव में बिजली के तार बिछाने के लिए हमने डीएम और सीडीओ को लिखकर मांग की, लेकिन उनकी कानों में जूं नहीं रेंगी। सर्वेश कहते हैं कि पांच सितंबर को हम लोग लखनऊ जाने की तैयारी कर रहे हैं। गांव में करीब दस बैलगाड़ियां तैयार की जा रही हैं, जिनमें सवार होकर हमलोग सीएम योगी अदित्यनाथ के दरबार में हाजिरी लगाएंगे और पीओके की दशा सुधारने की मांग करेंगे। सर्वेश कहते हैं कि ग्राम प्रधान चुनाव जीतने के बाद कभी हमारे गांव में नहीं आए। वो अक्सर कानपुर में रहते हैं और अगर मिलने पहुंच जाओ तो अशब्द कहकर भगा देते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि हमारे गांव से कुछ दूरी साढ़ स्थित स्थानीय विधायक अभिजीत सांगा का ऑफिस खुला है और सप्ताह में एक दिन के लिए वो यहां आते हैं। हमने उनसे मिलकर कई बार गांव के विकास की बात कही, लेकिन पैसा नहीं होने का बहाना बनाकर वो हमें टहला देते हैं।
बबुआ कौन देगा कंधा, शादी नहीं होने पर बाबा बने
गांव के सुखदेव यादव (88) ने बताया कि हमारे चार बेटे हैं। तीन की उम्र पचास के आसपास पहुंच गई है, वहीं चौथे नंबर का बेटा सोनू गणित से एमएससी पास कर नौकरी कर रहा है। नाते-रिश्तेदारों के साथ ही अखबार में शादी का विज्ञापन निकलवाया। पिछले नवरात्र को अमौली के सुरेश यादव अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आए, पर जैसे ही उन्होंने गांव की बदहाली देखकर उन्होंने बेटी की शादी करने से इनकार कर दिया। गांव में बिजली, पानी, शिक्षा, सड़क, साफ सफाई की व्यवस्था नहीं होने के चलते यहां कोई गरीब भी अपनी बेटी का विवाह करना नहीं चाहता। 65 साल की उम्र पार कर चुके राजाराम यादव जो गांव के बाहर मंदिर में घर बना लिया और बाबा का भेष रखकर अपनी बची जिंदगी काट रहे हैं।
रिपोर्ट- विनोद निगम

फोटो- फाइल तस्वीर

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