ग्वालियर में जन्मे ऋषि की कक्षा दो तक की पढ़ाई वहीं पर हुई। नौकरी के सिलसिले में पिता का कोलकाता ट्रांसफर हुआ तो ऋषि को आगे की पढ़ाई कोलकाता में करनी पड़ी। यहां से इंटर करने के बाद आईआईटी कानपुर में उनका चयन हो गया था। १९७९ में वे इंजीनियरिंग करने कानपुर आ गए।
१९८० में पिता का अचानक निधन होने से ऋषि को सदमा लगा। उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा और उन्होंने इंजीनियरिंग छोड़ दी। छह माह तक वे घर पर ही रहे और उसके बाद उन्होंने नई नौकरी की तलाश शुरू की।
अच्छी नौकरी के लिए स्नातक की पढ़ाई जरूरी थी, इसलिए उन्होंने नवाबगंज स्थित बीएसएसडी कॉलेज में बीकॉम में प्रवेश लिया और यहां से अपनी पढ़ाई के साथ-साथ सिविल सर्विस की तैयारी भी शुरू की।
उन्होंने पहली बार में सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास की और १९८३ में उनका चयन हो गया। आईपीएस में अच्छी रैंक आने पर उन्हें गृह राज्य में पोस्टिंग मिल गई।
सीबीआई निदेशक बनने पर जब ऋषि चार्ज लेने जा रहे थे तो इससे पहले उन्होंने बुआ को फोन कर उनका आशीर्वाद लिया। वे बुआ और पूरे परिवार से लगातार जुड़े हुए हैं। छह साल पहले भी वे पूरे परिवार के साथ शहर आए थे। उनकी दो बेटियां हैं जो अमेरिका में रहती हैं।
संगीत का शौक रखने वाले सीबीआई निदेशक ऋषि कढ़ी-चावल के शौकीन हैं और रफी-लता के नगमे सुनना पसंद करते हैं। उन्हें शायरी, ज्योतिष और शतरंज का भी शौक है।