सूथला कच्ची बस्ती, स्थानीय बताते हैं 500 से 700 मकान है। इस क्षेत्र में रहने वाले सुजाराम बताते हैं कि पिछले 35-40 साल से यहां रह रहा हूं। चुनाव के समय नेता आते हैं तो हम मांग भी यही करते हैं। लेकिन हर बात आश्वासन ही मिलता है। चांदणा भाकर की कच्ची बस्ती में मोहम्मद इंसाफ बताते हैं सालों से यहां रह रहे हैं। दूसरी पीढ़ी आ गई। लेकिन नेताओं के वादे अब तक पूरे नहीं हुए। बलदेव नगर जो कि शहर के बीचोबीच बड़ी कॉलोनी के रूप में है वह भी कच्ची बस्ती में ही पंजीकृत है। शास्त्री नगर थाने के सामने बस्ती, हाउसिंग बोर्ड प्रताप नगर का क्षेत्र, कुड़ी भगतासनी हाउसिंग बोर्ड के समीप, चौपासनी हाउसिंग बोर्ड के समीप भी कई बस्तियां हैं जो कि इसका हिस्सा है।
एक बस्ती का एक नेता कच्ची बस्तियों को बसाने और उन्हें पनपाने के लिए एक स्थानीय नेता होता है। यही नेता अपने हिसाब से लोगों को सेटल करवाते हैं। इसी के इशारे पर वोट भी पड़ते हैं और सरकारी काम भी होते हैं। कहने को कच्च बस्ती में निर्माण नहीं कर सकते लेकिन वोट बैंक के चक्कर में सरकारी मशीनरी खुद यहां सडक़ें, फुटपाथ, सीवरेज व बिजली-पानी की लाइन तक पहुंचाती है।
लोगों ने कर लिए मकान पक्के कच्ची बस्ती का जब तक नियमन न हो जाए और पट्टा न मिले तब तक एक ईंट लगाना भी मुश्किल होता है। लेकिन शहर की 300 से अधिक कच्ची बस्तियां पॉश कॉलोनियों को भी टक्कर दे ऐसे मकान लिए हुए हैं। ऐसा नहीं कि सरकारी अधिकारी इससे अनजान है। लेकिन वोट बैंक के चलते इतनी बड़ी संख्या में लोगों पर कार्रवाई भी नहीं की जा सकती।
एक नजर में कच्ची बस्तियों का गणित – 326 कच्ची बस्तियां हैं जोधपुर शहर में – करीब डेढ़ लाख से अधिक मकान हैं इन बस्तियों में। – करीब पांच लाख लोग इन बस्तियों में रहते हैं।
– सभी में हो गए पक्के निर्माण – अब देखने पर भी नहीं लगेंगे कच्चे क्या कहते हैं जानकार नगर निगम के पार्षद व कच्ची बस्ती प्रकोष्ठ के अध्यक्ष रेंवतसिंह इंदा बताते हैं कि नियमों की पेचिदगी के कारण कच्ची बस्तियों में पट्टे नहीं दिए जा रहे। हालांकि तीन-चार बस्तियों में पट्टे देकर कच्ची बस्ती की श्रेणियों से मुक्त करवाया। लेकिन अब भी शहर की कई बस्तियां इसमें शामिल है। नियमानुसार चले तो इनमें कोई निर्माण तक नहीं हो सकता।