उल्लेखनीय है कि वन विभाग ने ऋषिकेश की ब्रह्मपुरी स्थित मुनि की रेती में लीज संख्या 59 से आशाराम बापू को 1970 में लीज एक्सपायर होने और दोबारा रिन्यू नहीं कराने के कारण 9 सितंबर 2013 को वन विभाग ने भूमि खाली करने का नोटिस जारी किया था। न्यायालय ने भूमि को खाली कराने के आदेश पर 17 सितंबर 2013 को रोक लगा दी थी। जबकि स्टीफेन दुंगे ने वन विभाग से आसाराम का आश्रम ध्वस्त करने का अनुरोध किया था।
शिकायतकर्ता का कहना था कि वन भूमि की लीज अवधि पूर्व में ही समाप्त हो गई है। बाद में उन्होंने आसाराम की याचिका में भी अपने को पक्षकार बनाए जाने का एक प्रार्थना पत्र न्यायालय को दिया था। पूर्व सुनवाई पर न्यायालय ने पक्षकार बना कर शपथ-पत्र पेश करने के लिए कहा था। इस आदेश के पालन के बाद उन्होंने शपथ-पत्र में 20 वर्षों तक दी गई 1950 की ओरिजिनल लीज डीड भी न्यायालय के सम्मुख पेश की। स्थगन आदेश के बाद वन विभाग की भूमि से वन विभाग आश्रम हटा सकता है।
अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने बताया कि आश्रम में अवैध निर्माण के कारण भी वन विभाग ने फरवरी 2013 में नोटिस जारी किया था। जबकि पूर्व सुनवाई में एकलपीठ ने अपने आदेश में लीज डीड 1970 में खत्म होने के बाद रिन्यू न कराने का कारण पूछा था। न्यायालय ने कहा है कि ये भी साफ है कि आश्रम प्रबंधन बिना वन विभाग की अनुमति के गैर वन गतिविधियां चला रहा है। सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद न्यायमूॢत मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने इस पर लगी रोक को हटा दिया है। इसके साथ ही पूर्व के आदेश को निरस्त करने के साथ ही वन विभाग के 9 सितंबर 2013 के वनभूमि खाली करने का आदेश प्रभावी कर दिया है। इस आदेश के बाद ऋषिकेश वन भूमि में बसाया गया सजायाफ्ता आसाराम का आश्रम हटना तय हो गया है।