26 सितम्बर को जस्टिस विजय विश्नोई ने शिल्पी के आवेदन पर हुई बहस के बाद सुनवाई पूरी करते हुए निर्णय सुरक्षित रख लिया था। शनिवार को जस्टिस विश्नोई ने इस मामले में निर्णय प्रोनाउंस करते हुए शिल्पी को दो लाख का बेल बॉड भरने व 1-1 लाख की श्योरिटी पेश किए जाने पर जमानत पर रिहा किए जाने के आदेश दिए हैं। सजा स्थगन संचिता की ओर से उसे 25 अप्रैल 2018 को पोक्सोकोर्ट द्वारा सुनाई गई 20 वर्ष की सजा को चुनौती देने वाली अपील संख्या 622/2018 के निस्तारण तक जारी रहेगा।
शिल्पी के अधिवक्ता महेश बोडा व निशांत बोडा ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट ने सजा देने में गंभीर भूल कर दी है। एक महिला कैसे किसी महिला का गैंगरेप कर सकती है। इसलिए आईपीसी की सेक्शन 376 डी सेक्शन 59 तथा /6 व 17 ऑफ पोक्सो एक्ट सजा शिल्पी को नहीं दे सकते।
इधर, अभियोजन पक्ष की ओर से एएजी एसके व्यास, ओपी राठी व पीडिता के वकील पीसी सोलंकी ने शिल्पी को पूरे मामले की मुख्य सूत्रधार बताते हुए सजा स्थगन के आवेदन को खारिज करने की मांग की। उन्होंने कहा कि शिल्पी के पीडिता के भूत प्रेत से ग्रसित होने की बात कहने पर उसके परिजन पीडिता को आसाराम के पास ले गए थे।
दोनो पक्षों की बहस सुनने के बाद 26 सितम्बर को जस्टिस विश्नोई ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। शनिवार को निर्णय प्रोनाउंस करते हुए उन्होंने कहा कि चूंकि अपीलकर्ता संचिता के खिलाफ एेसा कोई स्पष्ट सबूत रिकॉर्ड में नहीं है कि उसने ही पीडिता को आसाराम के पास यौन शोषण के लिए भेजा था, इसलिए उसके खिलाफ 25 अप्रेल को पारित मूल सजा को उसकी ओर से पेश अपील के निस्तारण तक स्थगित किया जाता है। साथ ही दो लाख के बॉड भरने व 1-1 लाख की श्योरिटी पर जमानत पर रिहा किया जाता है।