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झाबुआ

मामा बालेश्वर दयाल आदिवासियों के हक के लिए लड़ते रहे

गुरु मामा जिन्होंने बेगार प्रथा के लिए राजा को प्रभावित कर आदिवासियों को मुक्ति दिलाई

झाबुआJul 15, 2019 / 06:43 pm

अर्जुन रिछारिया

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मामा बालेश्वर दयाल आदिवासियों के हक के लिए लड़ते रहे

बामनिया. गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाजवादी चिंतक मामा बालेश्वर दयाल मामा को हजारों लोग गुरु मानते हैं। खासकर झाबुआ जिले के लिए तो मामा ने अपना पूरा जीवन गुजार दिया। 26 दिसंबर 1998 को मामा का निधन हुआ।
राज्यसभा के पूर्व सांसद होने के बावजूद कभी बड़े अस्पतालों में इलाज नहीं कराया। बामनिया में ही इलाज कराते रहे। अंतिम समय में सरकार ने जबरन उन्हें रतलाम इलाज के लिए भेजा, लेकिन वे ज्यादा दिन यहां नहीं रुके और आखिरी सांस बामनिया में अपनी कुटिया में ही ली। उप्र से बामनिया आकर मामा बालेश्वर दयाल ने आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ी। 1937 में बामनिया में डूंगर विद्यापीठ भील आश्रम की स्थापना की थी। उस समय बामनिया होलकर राज्य जिला महिदपुर के तहत आता था। यहां बेगार प्रथा प्रचलित थी। मामाजी ने राजा को प्रभावित कर आदिवासियों को मुक्ति दिलाई। मामाजी ने बिड़ला से संपर्क कर बामनिया रेलवे स्टेशन के सामने टेकरी पर राम मंदिर बनवाया था। उन्होंने आदिवासियों से लंगोटी त्यागने का संकल्प लिया। जीवनभर समाज के उपेक्षित, गरीब वर्ग आदिवासियों के बीच रहकर उन्हीं की तरह जीवनयापन किया।
ऐसे गुरु के लिए की घोषणाएं कागजों में-
मामा के जीते जी और निधन के बाद भी कई छोटे-बड़े नेता उनकी कर्मस्थली बामनिया आते-जाते रहे। बड़ी-बड़ी घोषणाएं हुई और हर बार ये विश्वास दिलाया गया कि अब सबकुछ बदल जाएगा। बामनिया की स्थिति सुधरे न सुधरे कम से कम मामाजी की कुटिया और समाधि का उद्धार तो हो ही जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ। क्षेत्र सहित गुजरात और राजस्थान के कई क्षेत्रों के आदिवासियों में मामा को भगवान का दर्जा मिला है, लेकिन भगवान की जगह उपेक्षित है। उनकी ऐतिहासिक कुटिया, भील आश्रम उपेक्षा का शिकार है।
उपेक्षित है भील आश्रम और कुटिया-
मामाजी आदिवासी वर्ग के मसीहा रहें। उन्होंने आदिवासियों के लिए घरवालों को छोड़ दिया। जीवनभर समाज के उपेक्षितए गरीब वर्ग आदिवासियों के उत्थान के लिए न केवल संघर्ष बल्कि उनके बीच रहकर उन्ही की तरह जीवन.यापन किया और अपने जीवन के अंतिम क्षण एक कुटिया मे बिताए यह कुटिया आज भी यह बताती है कि मामा ने अपनी कथनी व करनी मे कोई अंतर नहीं किया। आज यह भील आश्रम व मामाजी की कुटिया पुरी तरह उपेक्षित है।
सामुदायिक भवन-
मामा की स्मृति में सामुदायिक भवन बनाने की घोषणा की थी। ताकि हर वर्ष मामा की पुण्यतिथि पर आने वाले अनुयायियों कों ठहरने की व्यवस्था हो पाएं। किंतु आज तक यह मांग भी पूरी नहीं हुई।
सभागृह-
मामा के नाम पर विशाल सभागृह बनाने की घोषणा तत्कालीन् मुख्यमंत्री दिग्वयजयसिंह ने की थी, लेकिन यह घोषणा भी पूरी नहीं हुई।
सर्वसुविधायुक्त अस्पताल-
पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुनादेवी ने माम की स्मृति मे सर्वसुविधायुक्त अस्पताल बनाने की घोषणा की थी। जमुनादेवी मामाजी की शिष्य रही हैं। अस्पताल अब तक नहीं बना।
आधुनिक शिक्षा केंद्र –
भीलों को शिक्षित करने के लिए मामा ने जिस भी आश्रम की स्थापना की थी। उसे को सर्वसुविधायुक्त आधुनिक शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित करने का आश्वसान समाजवेदी नेता मुलायमसिंह यादव ने अपने बामनिया प्रवास पर दिया था। इस मामले में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा।
सैनिक स्कूल-
पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फ र्नांडीस ने बामनिया में सैनिक स्कूल बनाए जाने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि यदि प्रदेश सरकार जमीन उपलब्ध कराती है तो बाकी कार्रवाई हम पूरी करवा लेंगें। इस दिशा में अब तक एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा जा सका।

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