मामा के जीते जी और निधन के बाद भी कई छोटे-बड़े नेता उनकी कर्मस्थली बामनिया आते-जाते रहे। बड़ी-बड़ी घोषणाएं हुई और हर बार ये विश्वास दिलाया गया कि अब सबकुछ बदल जाएगा। बामनिया की स्थिति सुधरे न सुधरे कम से कम मामाजी की कुटिया और समाधि का उद्धार तो हो ही जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ। क्षेत्र सहित गुजरात और राजस्थान के कई क्षेत्रों के आदिवासियों में मामा को भगवान का दर्जा मिला है, लेकिन भगवान की जगह उपेक्षित है। उनकी ऐतिहासिक कुटिया, भील आश्रम उपेक्षा का शिकार है।
मामाजी आदिवासी वर्ग के मसीहा रहें। उन्होंने आदिवासियों के लिए घरवालों को छोड़ दिया। जीवनभर समाज के उपेक्षितए गरीब वर्ग आदिवासियों के उत्थान के लिए न केवल संघर्ष बल्कि उनके बीच रहकर उन्ही की तरह जीवन.यापन किया और अपने जीवन के अंतिम क्षण एक कुटिया मे बिताए यह कुटिया आज भी यह बताती है कि मामा ने अपनी कथनी व करनी मे कोई अंतर नहीं किया। आज यह भील आश्रम व मामाजी की कुटिया पुरी तरह उपेक्षित है।
सामुदायिक भवन-
मामा की स्मृति में सामुदायिक भवन बनाने की घोषणा की थी। ताकि हर वर्ष मामा की पुण्यतिथि पर आने वाले अनुयायियों कों ठहरने की व्यवस्था हो पाएं। किंतु आज तक यह मांग भी पूरी नहीं हुई।
सभागृह-
मामा के नाम पर विशाल सभागृह बनाने की घोषणा तत्कालीन् मुख्यमंत्री दिग्वयजयसिंह ने की थी, लेकिन यह घोषणा भी पूरी नहीं हुई।
सर्वसुविधायुक्त अस्पताल-
पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुनादेवी ने माम की स्मृति मे सर्वसुविधायुक्त अस्पताल बनाने की घोषणा की थी। जमुनादेवी मामाजी की शिष्य रही हैं। अस्पताल अब तक नहीं बना।
आधुनिक शिक्षा केंद्र –
भीलों को शिक्षित करने के लिए मामा ने जिस भी आश्रम की स्थापना की थी। उसे को सर्वसुविधायुक्त आधुनिक शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित करने का आश्वसान समाजवेदी नेता मुलायमसिंह यादव ने अपने बामनिया प्रवास पर दिया था। इस मामले में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा।
सैनिक स्कूल-
पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फ र्नांडीस ने बामनिया में सैनिक स्कूल बनाए जाने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि यदि प्रदेश सरकार जमीन उपलब्ध कराती है तो बाकी कार्रवाई हम पूरी करवा लेंगें। इस दिशा में अब तक एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा जा सका।