घट रही है तिलोर की संख्य
-तिलोर या मैक्वीन बस्टर्ड, गोडावण परिवार का एक मध्यम आकार का शीत प्रवासी पक्षी है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के शुष्क इलाकों में सर्द ऋतु में प्रवास पर आता हैं।हकीकत यह भी
सदियों से इनका शिकार पारंपरिक रूप से पालतू बाज की ओर से किया जाता रहा हैं।तिलोर की लगातार घटती संख्या को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने वर्ष 1970 में कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रयास शुरू करवाए। राजधानी अबु धाबी में इंटरनेशनल फंड फॉर हुबारा कंजर्वेशन, नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान का गठन कर संरक्षण के प्रयास किए।1986 में सऊदी अरब में एक सहित कुछ बंदी प्रजनन सुविधाएं बनाई गई थी और 1990 के दशक के उत्तरार्ध से कृत्रिम प्रजनन में सफलता मिलने लगी। शुरुआत में जंगली और बाद में पूरी तरह से कृत्रिम गर्भाधान का उपयोग करके इनकी संख्या में बढ़ोतरी की गई। सर्द मौसम में दक्षिण पश्चिम एशिया में पलायन बसंत में प्रजनन के बाद, एशियाई हुबारा दक्षिण में पाकिस्तान, अरब प्रायद्वीप और पास के दक्षिण पश्चिम एशिया में सर्दियों में बिताने के लिए पलायन करते है। कुछ एशियाई हुबारा ईरान, पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के कुछ हिस्सों सहित दक्षिणी सीमा में रहते हैं और प्रजनन करते है। यह एशिया के रेगिस्तानी और शुष्क पठारी क्षेत्रों का मूल पक्षी है, जो मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप से कजाकिस्तान और पूर्व में मंगोलिया तक मिलता है।अब लौट चुके तिलोर
मौसम के बदलाव के साथ वन्यजीव बाहुल्य लाठी क्षेत्र में तिलोर पक्षी का प्रवास रहता है। बारिश के दौरान तालाबों में पानी की अच्छी आवक होने पर 250 से 300 तिलोर यहां आकर डेरा डालते है। इस वर्ष कम बारिश व तालाबों में पानी की कमी के बावजूद 200 तिलोर ने डेरा डाला था, जो अब लौट चुके है।-राधेश्याम पेमाणी, वन्यजीवप्रेमी, धोलिया।