scriptसर्द मौसम में लाठी क्षेत्र में डाला था डेरा, छह माह बाद भीषण गर्मी के मौसम में ली विदाई | Camped in Lathi area during cold weather, bid farewell after six months in scorching heat | Patrika News
जैसलमेर

सर्द मौसम में लाठी क्षेत्र में डाला था डेरा, छह माह बाद भीषण गर्मी के मौसम में ली विदाई

लाठी क्षेत्र में गत सात माह से अपना डेरा डालकर बैठे प्रवासी पक्षी तिलोर ने पुन: स्वदेश का रुख कर लिया है। इस वर्ष लाठी क्षेत्र में करीब 200 तिलोर ने अपना डेरा डाला था। भीषण गर्मी का दौर शुरू होने के साथ तिलोर ने स्वदेश का रुख कर लिया है। सर्दी के मौसम में सरहदी जिले में इनका प्रवास होता है तथा चार से छह माह तक यहां निवास करते है। लाठी व आसपास क्षेत्र में तिलोर देखे गए। जानकारों के अनुसार जैसलमेर सरहद से सटे पाकिस्तान और उसके आसपास क्षेत्रों में तिलोर का शिकार किया जाता है।

जैसलमेरApr 23, 2024 / 08:23 pm

Deepak Vyas

tilor bird
लाठी क्षेत्र में गत सात माह से अपना डेरा डालकर बैठे प्रवासी पक्षी तिलोर ने पुन: स्वदेश का रुख कर लिया है। इस वर्ष लाठी क्षेत्र में करीब 200 तिलोर ने अपना डेरा डाला था। भीषण गर्मी का दौर शुरू होने के साथ तिलोर ने स्वदेश का रुख कर लिया है। सर्दी के मौसम में सरहदी जिले में इनका प्रवास होता है तथा चार से छह माह तक यहां निवास करते है। लाठी व आसपास क्षेत्र में तिलोर देखे गए। जानकारों के अनुसार जैसलमेर सरहद से सटे पाकिस्तान और उसके आसपास क्षेत्रों में तिलोर का शिकार किया जाता है। विगत कई वर्षों से ये तिलोर भारत की तरफ अपना रुख कर रहे है। तिलोर के झुंड थार के रेगिस्तानी इलाकों में सर्दी ऋतु के आगमन के साथ ही आने शुरू हो जाते है। गौरतलब है कि तिलोर विशेष रूप से शुष्क पठारी क्षेत्रों का मूल पक्षी है,जो मिश्र के सिनाई प्रायद्वीप से कजाकिस्तान और पूर्व में मंगोलिया तक आमतौर पर विचरण करते है। छह माह तक तिलोर ने यहां प्रवास किया।

घट रही है तिलोर की संख्य

-तिलोर या मैक्वीन बस्टर्ड, गोडावण परिवार का एक मध्यम आकार का शीत प्रवासी पक्षी है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के शुष्क इलाकों में सर्द ऋतु में प्रवास पर आता हैं।
-यह एशिया के रेगिस्तानी और शुष्क पठारी क्षेत्रों का मूल पक्षी है, जो मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप से कजाकिस्तान और पूर्व में मंगोलिया तक आमतौर पर विचरण करता है।

-19वीं शताब्दी मे ग्रेट ब्रिटेन तक इन्हें देखा जा सकता था।
– एक अध्ययन के अनुसार इनकी संख्या में कमी का प्रमुख कारण मुख्य रूप से शिकार और बड़े स्तर पर भूमि उपयोग में परिवर्तन हैं।

– वर्ष 2004 तक इनकी वैश्विक आबादी में 20 से 50 फीसदी की कमी देखी गई है।
-वर्ष 2003 में हुए अनुवांशिक शोध में इनको साधारण हुबारा बस्टर्ड से अलग किया गया और अब ये हुबारा बस्टर्ड की एक उपप्रजाति मैकक्वीन बस्टर्ड या एशियन हुबारा के रूप में जानी जाती हैं।

हकीकत यह भी

सदियों से इनका शिकार पारंपरिक रूप से पालतू बाज की ओर से किया जाता रहा हैं।तिलोर की लगातार घटती संख्या को देखते हुए संयुक्त अरब अमीरात सरकार ने वर्ष 1970 में कृत्रिम प्रजनन के लिए प्रयास शुरू करवाए। राजधानी अबु धाबी में इंटरनेशनल फंड फॉर हुबारा कंजर्वेशन, नाम से एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान का गठन कर संरक्षण के प्रयास किए।1986 में सऊदी अरब में एक सहित कुछ बंदी प्रजनन सुविधाएं बनाई गई थी और 1990 के दशक के उत्तरार्ध से कृत्रिम प्रजनन में सफलता मिलने लगी। शुरुआत में जंगली और बाद में पूरी तरह से कृत्रिम गर्भाधान का उपयोग करके इनकी संख्या में बढ़ोतरी की गई। सर्द मौसम में दक्षिण पश्चिम एशिया में पलायन बसंत में प्रजनन के बाद, एशियाई हुबारा दक्षिण में पाकिस्तान, अरब प्रायद्वीप और पास के दक्षिण पश्चिम एशिया में सर्दियों में बिताने के लिए पलायन करते है। कुछ एशियाई हुबारा ईरान, पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के कुछ हिस्सों सहित दक्षिणी सीमा में रहते हैं और प्रजनन करते है। यह एशिया के रेगिस्तानी और शुष्क पठारी क्षेत्रों का मूल पक्षी है, जो मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप से कजाकिस्तान और पूर्व में मंगोलिया तक मिलता है।

अब लौट चुके तिलोर

मौसम के बदलाव के साथ वन्यजीव बाहुल्य लाठी क्षेत्र में तिलोर पक्षी का प्रवास रहता है। बारिश के दौरान तालाबों में पानी की अच्छी आवक होने पर 250 से 300 तिलोर यहां आकर डेरा डालते है। इस वर्ष कम बारिश व तालाबों में पानी की कमी के बावजूद 200 तिलोर ने डेरा डाला था, जो अब लौट चुके है।
-राधेश्याम पेमाणी, वन्यजीवप्रेमी, धोलिया।

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