172.46 के मुकाबले 161.36 मिमी बारिश
राजस्थान में सामान्य 172.46 मिमी बारिश के मुकाबले अभी तक 161.36 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई है। जयपुर जिले की बात की जाए तो सामान्य 181.80 मिमी बारिश के मुकाबले अब तक केवल 111.26 मिमी बारिश हुई जो करीब 38.8 प्रतिशत कम है। वहीं पूरे जयपुर संभाग में सामान्य के मुकाबले अभी तक 13.1 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई।
जोधपुर संभाग का हाल बेहाल
संभाग के हिसाब से जोधपुर के हाल सबसे ज्यादा खराब हैं। यहां सामान्य से 55.6 प्रतिशत बारिश कम हुई है। वहीं, जिलों में सबसे कम सिरोही में सामान्य से 61.6 प्रतिशत कम बारिश हुई है। सामान्य के मुकाबले सबसे ज्यादा बारिश प्रतापगढ़ जिले में हुई है। यहां सामान्य 278.30 मिमी बारिश के मुकाबले अब तक 409.42 मिमी बारिश हुई है, जो सामान्य से 47.1 प्रतिशत ज्यादा है।
12 जिलों में हाल खराब
पूरे प्रदेश के जिलों की बात की जाए तो पांच जिले ऐसे हैं जहां सामान्य से 60 प्रतिशत तक ज्यादा बारिश हुई है। वहीं 15 जिलों में सामान्य के आस-पास या कुछ ज्यादा बारिश हुई है। 12 जिलों में कम बारिश दर्ज की गई है, जबकि एक जिले में सूखे के हालात हैं।
संभाग——-सामान्य——-वास्तविक बारिश (मिमी में)
बीकानेर—–92.98–61.45
जोधपुर–134.65–59.84
अजमेर–166.48–147.71
भरतपुर–180.30—196.01
जयपुर–170.14—147.90
कोटा—225.73—223.17
उदयपुर–228.47—284.30 गौरतलब है कि मानसून की बेरुखी के चलते दिनोंदिन सूखने के कगार पर पहुंच रहे बीसलपुर बांध के गेज में होती गिरावट के साथ ही पानी में मिट्टी की मात्रा बढऩे लगी है। वहीं पानी का रंग भी घटते जल स्तर के साथ बदलने लगा है। बीसलपुर-टोंक-उनियारा पेयजल परियोजना के तहत फिल्टर होते पानी में अब क्लोरिन की मात्रा बढ़ानी पड़ रही है, वहीं फिटकरी भी दोगुना मात्रा में डालनी पड़ रही है। उल्लेखनीय है कि गत नवंबर से मार्च-19 तक एक ओर जहां पानी में कलर 17 टीसीयू (ट्रयू कलर यूनिट)होता था, वहीं अब जून में पानी की मात्रा घटने से बढ़कर 25 टीसीयू हो गया है। इसी प्रकार पानी की ट्रबोलिटी (मिट्टी का अंश) नवंबर से पूर्व पानी के भराव के समय 5 से 7 एनटीयू (नेफ्लोमेट्रिक ट्रबोलिटी यूनिट) था, जो अब बांध में जलस्तर की गिरावट के साथ ही बढ़कर 9 से 10 एनटीयू हो गया है। बीसलपुर टोंक-उनियारा-पेयजल परियोजना के राजमहल फिल्टर प्लांट के प्रोजेक्ट मैनेजर शादाब खान ने बताया कि पहले एक माह में पानी से करीब 200 किलो स्लज (कचरा) निकलता था, जो अब बढ़ कर 600 किलो हो गया है। इसी प्रकार पूर्व में पानी को फिल्टर करने के लिए 8 से 10 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) फिटकरी का डालनी पड़ती थी, जो अब बढ़ाकर 18 से 20 पीपीएम डालनी पड़ रही है।