नोर्थ जोन कल्चरल सेंटर, पटियाला के सहयोग से नाट्योत्सव का आयोजन किया जा रहा है। वृन्दावन में अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं… गीत पर रंगीन वस्त्रों में नृत्य करती गोपिकाओं के साथ नाटक की शुरूआत होती है। कालान्तर में घटनाक्रम बदलता हैं और राधा नामक एक विधवा बेहद दयनीय अवस्था में विधवा आश्रम पहुंचती है। जहां विधवाएं सफेद साडी में भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन कर रही है। नाटक आगे बढता है और ‘राधा’ के जीवन में निचले वर्ण का नवयुवक ‘माधव’ आता है। दोनों आपस में प्रेम करने लगते है, लेकिन समाज की कुरीतियां और वर्ण व्यवस्था उनके मार्ग में अवरोध साबित होंते हैं। ‘कृष्ण इस धरती पर ही हैं, हम सबके साथ, हम सबके लिए, हम सबके भीतर’ – शब्दों के साथ नाटक समापन होता है।