गजानंद ने बताया कि मेरे परिवार की अच्छी स्थिति नहीं थी। शुरू से ही खेती पर गुजारा किया है। फसल बाजार में अच्छी बिक जाती तो साल अच्छी निकलती थी। नहीं तो फिर उधारी से घर-खर्च चलता था। इसी बीच बेटे को अफसर बनाने की जिम्मेदारी भी आ गई। कभी फसल बेची तो कभी कर्जा लिया। बेटे की पढ़ाई पूरी करा कर उसे जयपुर-दिल्ली जैसे अच्छे शहरों में तैयारी कराई।
मैं आज जो कुछ भी हूं, पिता की बदौलत हूं। मुझे समाज और जनता की सेवा की सीख देते हुए अफसर बनाया। मुझे पिता का सपना पूरा करने का सौभाग्य मिला। यह मेरी सबसे बड़ी कामयाबी है।