आखिर क्यों मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट और इसलिए जज ने सीबीआई को दी कमान
३ मई को सुनवाई करते हुए इस मामले के लिए बनी एसआईटी की सुस्त कार्रवाई पर सख्त भी हुआ है। ज्ञात हो कि एसआईटी ने छह साल में सिर्फ पांच लोगों के बयान दर्ज किए गए हैं। साथ ही उन्होंने सीबीआई के लिए आदेश दिया कि इस मामले में जो जांच टीम नियुक्त की जाएगी उसमें जांच अधिकारी छग से बाहर का होना चाहिए। वहीं इस रिट याचिका को छह महीने के बाद फिर से सुनवाई के लिए लगाने को कहा है।
क्या है मामला
गौरतलब है कि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमले से ठीक 8 दिन पहले घटी इस घटना को मानवाधिकार उल्लंघन की गंभीर घटनाओं में गिना जाता हैं। दरअसल ग्रामीणों का आरोप है कि त्यौहार पर जुटे निर्दोष आदिवासियों पर हुई रही फायरिंग बीजापुर के एडसमेटा गांव के करीब वर्ष 2013 में 17-18 मई की रात को सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच गोलीबारी में तीन बच्चे और सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन के एक जवान समेत आठ ग्रामीणों की जान चली गई थी। इसके बाद ग्रामीणों ने कहा था कि वे सभी देवगुडी में बीज त्यौहार मनाने के लिए इकठ्ठा हुए थे इसी दौरान पुलिस मौके पर पहुंची और बेगुनाहों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा। इसमें कर्मा पाडू, कर्मा गुड्डू, कर्मा जोगा, कर्मा बदरू, कर्मा शम्भू, कर्मा मासा, पूनेम लाकु, पूनेम सोलू की मौके पर ही मौत हो गई। इसमें तीन बेहद कम उम्र के बच्चे थे। इसके अलावा छोटू कर्मा, छन्नू, पूनेम, शम्भु और करा मायलु घायल हो गए। इन सभी को पुसिल माओवादी मानती है।
इधर सोनी सोढ़ी ने जताई खुशी
इस मामले में बस्तर में आदिवासियों के लिए काम कर रही समाजसेवी सोनी सोढ़ी ने कहा यह बस्तर के आदिवासियों की बड़ी जीत है। हालांकि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है लेकिन फिर भी सीबीआई यदि गांव खुद जाकर मामले की जांच करती है तो यह बेहद स्वागत योग्य बात है। हम खुद इसके लिए लागातार प्रयास कर रहे थे। उन्होंने मांग भी की थी कि जांच गांव में जाकर करनी चाहिए।