भाई,भाई का नहीं होता पिता, पुत्र का नहीं होता और पुत्र भी पिता का नहीं होता। परंतु अयोध्या के राज्य में दशरथ नंदन प्रभु श्री राम जिन्होंने मनुष्य स्वरूप में अवतार लिया, अपना जीवन भी मनुष्य के समान ही व्यतीत किया। आचार्य ने कहा कि एक युवा जिसे दूसरे दिन प्रात: काल युवराज बनना है। उसने पिता की आज्ञा मानकर वन में जाना स्वीकार किया। यहां तक तो ठीक था, लेकिन वन में भरत आए, उन्होंने राजपाट राम जी को देने की बात की, रामजी ने मना कर दिया और कहा कि तुम ही अयोध्या का राज करो।पिता का आदेश मेरे वन गमन के लिए है। कथाव्यास ने कहा कि वन गमन के दौरान प्रभु श्री राम ने कई कष्ट झेले, परंतु किंचित मात्र भी उन्होंने अपने पिता को दोष नहीं दिया। आचार्य कहते हैं कि सीता हरण के पश्चात प्रभु श्री राम व्याकुल हुए परंतु हिम्मत नहीं हारी, क्योंकि प्रभु श्रीराम का लक्ष्य असुरी शक्तियों का वध करना था। इसीलिए उनका जन्म हुआ था।