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इंदौर

अब भी लोग नहीं करते किसी घायल की मदद, ऐसा हो रहा है इंदौर में

एमवाय में हर दिन आ रहा एक लावारिस घायल, लेकिन आम लोग नहीं पहुंचाते, फिर संवेदनशील हो इंदौर…

इंदौरDec 14, 2017 / 11:45 am

अर्जुन रिछारिया

इंदौर. पलासिया क्षेत्र में तीन निजी अस्पतालों के बीच रविवार रात ९ बजे निखिल अग्रवाल आधे घंटे से ज्यादा समय तक सडक़ पर तड़पता रहा, लेकिन लोग तमाशबीन बने रहे, कोई मदद को आगे नहीं आया। एम्बुलेंस जब तक निखिल को अस्पताल लेकर पहुंची, तब तक देर हो चुकी थी।
यह पहला मामला नहीं है, जब लोगों की असंवेदनशीलता से सडक़ पर किसी की जान गई हो। एमवाय अस्पताल में रोजाना एक घायल लावारिस हालत में पहुंचता है, लेकिन अधिकतर मामलों में पुलिस और एम्बुलेंस ही घायल को लाते हैं, आम जनता की भागीदारी बहुत कम रहती है।
गोल्डन आवर है अहम
एमवायएच के आकस्मिक चिकित्सा केंद्र प्रभारी डॉ. सुमित शुक्ला ने बताया, अधिकतर मामलों में पुलिस की गाड़ी या एम्बुलेंस ही ऐसे मरीजों को लेकर आती है। गंभीर मरीज का आधा घंटा प्लेटिनम और एक घंटा गोल्डन आवर कहलाता है। एक्सीडेंट, हार्ट अटैक या ब्रेन स्ट्रोक के मरीज को समय रहते अस्पताल पहुंचने पर बचने की संभावना बढ़ जाती हैं। सडक़ पर घायल या मरीज को देख लोगों की धारणा होती है, हमें क्या लेना, कोई हमारा तो नहीं है। जबकि यह सोचना चाहिए, यदि उस व्यक्ति की जगह कोई हमारा या हम होंगें तो क्या होगा। आज घायल को अस्पताल पहुंचाने वाले व्यक्ति से नाम तक नहीं पूछने का नियम है, कानूनी अड़चनों में फंसने के डर की बात वाजिब नहीं है।
एम्बुलेंस सेवा का होने लगा इंतजार : सडक़ पर मिले घायलों को पहले जहां लोग ऑटो रिक्शा या अन्य साधन से अस्पताल पहुंचा देते थे। आज अधिकतर मामलों में मदद को आगे आने की बजाय लोग एम्बुलेंस १०८ या पुलिस को कॉल करना ही अपना कर्तव्य समझने लगे हैं, जबकि घायल या अचेत व्यक्ति को तुरंत अस्पताल पहुंचना सबसे महत्वपूर्ण होता है।
600 एम्बुलेंस रोज जाती हैं 6000 कॉल पर
एम्बुलेंस 108 को संचालित करने वाली जिगित्सा हेल्थ केयर कंपनी के सीएफओ मनीष संचेती ने बताया, प्रदेश में 600 के करीब एम्बुलेंस चल रही हैं। रोजाना 6000 कॉल पर एम्बुलेंस भेजी जाती है, यानी एक एम्बुलेंस २४ घंटे में 10 मरीजों को सेवा दे पाती है। इंदौर में 16 एम्बुलेंस तैनात हैं। कॉल सेंटर पर रोज 25 से 26 हजार कॉल आते हैं, अधिकतर गैरजरूरी होते हैं। कई लोग मोबाइल रिचार्ज, गैस जैसी जानकारियां मांगते हैं, तो कुछ कॉलसेंटर की महिला कर्मचारियों से छेड़छाड़ करते हैं। हादसे में घायल को उठाना गंभीर मामलों में मदद की बजाय मरीज के लिए खतरनाक हो सकता है। हार्ट या ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में तुरंत मदद की जरूरत होती है। एम्बुलेंस ट्रैफिक व दूरी के हिसाब से ग्रामीण क्षेत्रों में २० से लेकर ४५ मिनट में पहुंच पाती है। ऐसे में मरीज को बेसिक लाइफ सपोर्ट ट्रेनिंग (सीपीआर) की जरूरत होती है।
यह है मामला
रविवार रात 9 बजे निखिल अग्रवाल स्टेट बैंक के पास पत्रकार कॉलोनी रोड पर ब्लड प्रेशर बढऩे से चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़े। 35 मिनट तक लोग वीडियो बनाने के साथ केवल बातें ही करते रहे। एक व्यक्ति ने कुछ देर बाद एम्बुलेंस 108को कॉल किया। एम्बुलेंस को आने में 20 मिनट लगे, एम्बुलेंस जब तक निखिल को एमवाय अस्पताल लेकर पहुंची, उनकी मौत हो चुकी थी। इस मामले ने फिर सडक़ पर जनता की संवेदनशीलता को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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