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आजादी के 72 सालों के बाद भी जनता मूलभूत सुविधाओं से वंचित है तो ये कैसी राजनीति है !

आजादी के 72 वर्षो बाद भी हम यदि देश की आबादी मौलिक आवश्यकताओं से वंचित रही और उसे अपने रोटी-कपड़ा और मकान के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है तो यह निश्चय ही शासक वर्ग द्वारा जनसामान्य के प्रति किया गया अक्षम्य आपराधिक कृत्य है।

रायपुरMay 07, 2019 / 04:37 pm

Anjalee Singh

election

आजादी के 72 सालों के बाद भी जनता मूलभूत सुविधाओं से वंचित है तो ये कैसी राजनीति है !

रायपुर. पूरे देश में लोकसभा चुनाव जारी है। यहां पढ़िए इस चुनाव पर डाॅ. ए. के. तिवारी का लेख

देश के चुनावों में राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाने के पीछे छिपे कारणों की यदि तलाश की जाये तो शायद यह वट वृक्ष की जड़ों का रूप ले लेगा। किसी भी देश का चुनाव उस देश के आम जनो की भावनाओं का प्रगटीकरण ही तो है और यदि उन मूलभूत समस्याओं या आकांक्षाओं को विभिन्न दल नहीं समझ पा रहें हैं तो या तो यह उनके वैचारिक दारिद्र का प्रतीक है, अथवा समझ कर भी निहित स्वार्थवश उसे मुद्दो के रूप में जनमानस के सामने लाने से बच रहे हैं।

शायद नेता इतने व्यक्तिनिष्ठ हो गये हैं कि या तो वे स्वयंभू हो जाते हैं अथवा शरणागत। आज हमें इस तथ्य को भी दृष्टिगत रखना होगा कि सांसद अथवा विधायक के रूप में तथाकथित जनसेवको की सम्पत्ति में अकूत वृद्धि हो जाती है जो निश्चित ही किसी अनैतिक एवं अवांक्षित गठजोड़ की उपज है। जिसकी परीणति जनसामान्य को करवृद्धि के रूप में चुकानी पड़ती है और मंहगाई की दर अनियंत्रित हो जाती है। अगर इतिहास की परतों को उघारे तो अवश्य ही ज्ञात होगा कि लोक के हित के लिये मेधा में उठने वाले निःस्वार्थ विचार ही मुख्य भूमिका अदा करते है चाहे वह शासक दल का विचार हो अथवा प्रतिपक्ष का। प्रजातंत्र में विचारो की पवित्रता सिर्फ लोक हित से निर्मित होती है, इस भावना का परिचय महात्मा गाॅंधी, नेहरूजी, सरदार पटेल और अन्य समकालीन नेताओं ने समय पर दिया है।

जब-जब विचारों की सदाशयता का स्थान स्वार्थ ने लिया है, देश एक मेधावी उर्जा से वंचित हुआ है। गाॅंधी जी और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का वैचारिक टकराव इसका जीवन्त उदाहरण है। देश का प्रजातंत्र लोकोपयोगी योजनाओ का निर्माण कर यदि उन्हें निर्धारित समय में पूर्ण कर लक्ष्योन्मुखी बनाए तो हम अपने भविष्य के कार्यक्रमो को तेजी से आगे बढ़ा पायेंगे अन्यथा हर चुनाव में एक ही बात कर हम स्वयमेव अपने मानसिक दिवालियेपन का परिचय देते रहेंगे।

राजनैतिक दलों की स्वार्थपरता और सत्तालोलुपता ने देश की सीमावर्ती राज्यों में अतार्किक एवं राष्ट्र विरोधी ताकतों से हाथ मिलाकर देश की सुरक्षा पर ही प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया है।

किसी भी राष्ट्र के लिये देश की सुरक्षा सर्वोपरि है और जब प्रजातंत्र का रक्षक वोट ही गैर भारतीयों के हाथ की कठपुतली बन जाये तो यह राजनीति की विडम्बना ही कही जायेगी।

देश की सामरिक सुरक्षा से सम्बंधित हथियारों की खरीदी, देश के लिये एक स्थायी शिक्षा नीति, काले धन से निपटने सम्बंधित योजनाएं मंहगाई, मुद्रास्फीदी, रोजगार आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिस पर यदि पक्ष-विपक्ष राजनीति से उपर उठकर योजनाएं बनाकर सार्थक क्रियान्वयन की ओर अग्रसर हो तो सम्भवतः हम सचमुच राष्ट्रवाद लाने में सफल होंगे।

डाॅ. ए. के. तिवारी

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