२० से ४० रूपए मे तस्करी
विगत तीन महीनों के दौरान देशभर से पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों ने हजारों टन लाल चंदन बरामद किया है। बंगलूरू पुलिस ने 19 मई को एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह के 13 सदस्यों को गिरफ्तार कर साढ़े तीन करोड़ मूल्य का 4500 किलो लाल चंदन बरामद किया। जून माह में दिल्ली पुलिस ने एक कुख्यात तस्कर को गिरफ्तार कर करीब दो करोड़ रूपए मूल्य का चंदन बरामद किया। तस्कर स्थानीय लोगों को 20 से 40 रूपए प्रतिकिलों के हिसाब से मजदूरी देकर जंगलों से चंदन की तस्करी करवाते हैं। तस्करों के हौंसले किस हद तक बुलंद हैं कि दिसंबर 2015 में आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में लालचंदन की तस्करी में लिप्त करीब सौ तस्करों ने वन विभाग के दो अफसरों की हत्या कर दी।
भारत कभी सिरमौर था
देश चंदन उत्पादन कभी सिरमौर था। 1960 के दशक में करीब 4 हजार टन चंदन का वार्षिक उत्पादन होता था। तस्करी और चोरी के कारण इसमें गिरावट आ गई। अब इसका उत्पादन सिमट कर मात्र 300 टन रह गया है। वर्ष 2000 तक तमिलनाड, केरल और कर्नाटक के जंगलों में ही लाल चंदन मिलता था। इसके बाद इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए कर्नाटक और तमिलनाडू ने निजी क्षेत्र में इसकी खेती की स्वीकृति दे दी।
क्या है रक्त चंदन?
रक्त चंदन एक अलग जाति का पेड़ है जिसकी लकड़ी लाल होती है लेकिन उसमे सफेद चंदन की तरह कोई महक नहीं होती। रक्त चंदन को वैज्ञानिक नाम टेरोकार्पस सैन्टनस है जबकि सफेद चंदन को ‘सैंटलम अल्बम के नाम से जाना जाता है और ये दोनों अलग जाति के पेड़ हैं। लाल चंदन के पेड़ मुख्यत: तमिलनाडु से लगे आंध्र प्रदेश के चार जिलों – चित्तूर, कडप्पा, कुरनूल और नेल्लोर – में फैले शेषाचलम के पहाड़ी इलाक़े में उगते हैं।
5 लाख हेक्टेयर में फैला है
लगभग पांच लाख वर्ग हेक्टेयर में फैले इस जंगली क्षेत्र में पाए जाने वाले इस अनोखे पेड़ की औसत उंचाई आठ से ग्यारह मीटर होती है और बहुत धीरे-धीरे बढऩे की वजह से इसकी लकड़ी का घनत्व बहुत ज़्यादा होता है। जानकर बताते है कि लाल चंदन की लकड़ी अन्य लकडय़िों से उलट पानी में तेजी से डूब जाती हैं क्योंकि इसका घनत्व पानी से ज़्यादा होता है, यही असली रक्त चंदन की पहचान होती है।
लालचंदन का उपयोग
पूजा-अर्चना में उपयोग किया जाने वाला लाल चंदन बहुत ही पवित्र माना जाता है। यह पूजा के अलावा इससे माथे पर तिलक भी किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार लाल चंदन घर में खुशियां भी लाता है।
लाल रंग का होने की वजह से इसे रक्त चंदन भी कहते हैं, पूजा-पाठ में इसका प्रयोग होता है। पीले चंदन का इस्तेमाल आम तौर वैष्णव मत को मानने वाले करते हैं जबकि रक्त चंदन शैव और शाक्त मत को मानने वाले अधिक प्रयोग करते हैं। इसका उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनों में भी होता है। सफेद चंदन की तरह रक्त चंदन का उपयोग अमूमन दवाएँ या इत्र बनाने और हवन-पूजा के लिए नहीं होता लेकिन इससे महंगे फर्नीचर और सजावट के सामान बनते हैं और इसका प्राकृतिक रंग कॉस्मेटिक उत्पाद और शराब बनाने में भी इस्तेमाल होता है।
कहाँ है मांग?
आंध्र प्रदेश में पिछले साल दिसंबर में हुई नीलामी में चीन, जापान, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात के अलावा कुछ पश्चिमी देशों से लगभग चार सौ व्यापारियों ने बोली लगाई थी। इन चार सौ में लगभग डेढ़ सौ चीनी कारोबारी थे। अंतराष्ट्रीय बाजार में इसकी क़ीमत तीन हज़ार रुपए प्रति किलो है। वर्तमान में लाल चंदन की मांग सबसे ज्यादा चीन में ही है क्योंकि वहां पर इसकी लोकप्रियता चौदहवी से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य तक राज करने वाले मिंग वंश के समय से बनी हुई है। मिंग वंश के शासकों को लाल चंदन से बने फर्नीचर और सजावटी सामान इतने पसंद थे कि उन्होंने इसे सभी संभावित जगहों से मंगवाया।
मिंग वंश की दीवानगी
मिंग वंश और उसके बाद के शासकों के बीच लाल चंदन की लकड़ी के प्रति दीवानगी का पता इस बात से चलता है कि वहां ‘रेड सैंडलवुड म्यूजय़िम नाम का एक विशेष संग्रहालय है जहां लाल चंदन से बने अनगिनत फर्नीचर और सजावटी सामान संजोकर रखे गए हैं। चीन में तो लाल चंदन की कलाकृतियों के लिए संग्रहालय भी है।
जापानी वाद्य यंत्र में इस्तेमाल
लाल चंदन का उपयोग जापानी वाद्य य़ंत्रों के ऊपर के हिस्से में इस्तेमाल होता है। पहले जापान में भी इसकी काफी माँग थी जहां शादी के वक्त दिए जाने वाले पारंपरिक वाद्ययंत्र शामिशेन बनाने के लिए लाल चंदन की लकड़ी इस्तेमाल होती थी, लेकिन अब यह परंपरा धीरे-धीरे ख़त्म हो रही है इसलिए वहां इसकी मांग भी घट रही है।