1989 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने कर्नाटक की 28 में से 27 सीटें जीती थीं
दक्षिणी राज्यों में देखा जाएं तो कर्नाटक भाजपा के लिए अधिक मुफीद रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 25 सीटें अपने कब्जे में कर ली थीं। हालांकि इस बार भी पार्टी पिछली जीत को दोहराने के लिए पूरी ताकत झोंक रही हैं लेकिन इस बार राह थोड़ी मुश्किल दिख रही है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में कांग्रेस बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और उसने सरकार बनाई। ऐसे में इसका असर लोकसभा चुनाव पर भी देखने को मिल सकता है। भाजपा की कुछ सीटों पर बागी भी खेल बिगाड़ सकते हैं।
मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा ने 2019 में 28 निर्वाचन क्षेत्रों में से 25 में अपने उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित कर ली थी। पिछली बार किसी पार्टी ने कर्नाटक में 25 या उससे अधिक सीटें तीन दशक से भी पहले जीती थीं। 1989 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने कर्नाटक की 28 सीटों में से 27 सीटें जीती थीं। तब से कांग्रेस के जीती गई लोकसभा सीटों की संख्या में धीरे-धीरे गिरावट देखी गई। 2019 में यह अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई जब पार्टी ने संसदीय चुनावों में सिर्फ एक सीट जीती। भगवा पार्टी ने पहली बार 1991 में कर्नाटक में अपना खाता खोला था, जब भाजपा के तीन नेता राज्य से चुने गए थे। पहले के मैंगलोर निर्वाचन क्षेत्र से वी धनंजय कुमार, बेंगलूरु दक्षिण से के वेंकटगिरी गौड़ा और तुमकुर से एस मल्लिकार्जुनैया। अगले चुनाव में भाजपा अपनी सीटों की संख्या पांच तक बढ़ाने में सफल रही। तब से बीजेपी की ताकत बढ़ी है, जिसके लिए 90 के दशक के अंत में जनता दल का विभाजन एक प्रमुख कारक माना जाता है। 1998 में 13 सीटें जीतकर पहली बार कर्नाटक से दोहरे अंक में सीटें हासिल करने वाली भाजपा अपनी सीटें और बढ़ाने में सफल रही। 2014 में जनता दल (यूनाइटेड) के भाजपा में विलय के बाद इसकी संख्या 18 हो गई, जिसके परिणामस्वरूप पार्टी को महत्वपूर्ण लाभ हुआ। खासकर लिंगायत बहुल उत्तरी कर्नाटक क्षेत्र में। 2009 और 2014 के अगले दो चुनावों में कर्नाटक से भाजपा की सीटें क्रमश: 19 और 17 थीं। इस बीच कांग्रेस ने 1998 के बाद से कर्नाटक में नौ से अधिक सीटें नहीं जीती। कर्नाटक में कांग्रेस की सबसे अधिक सीटें 1998 और 2014 के चुनावों में थीं जब कांग्रेस ने क्रमश: नौ सीटें जीतीं। कांग्रेस और जद (एस) दोनों ने 2019 में अपनी सबसे कम सीटें दर्ज कीं, जब दोनों पार्टियों ने एक-एक सीट जीती।
दक्षिणी राज्यों में देखा जाएं तो कर्नाटक भाजपा के लिए अधिक मुफीद रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में कर्नाटक में भाजपा ने 28 में से 25 सीटें अपने कब्जे में कर ली थीं। हालांकि इस बार भी पार्टी पिछली जीत को दोहराने के लिए पूरी ताकत झोंक रही हैं लेकिन इस बार राह थोड़ी मुश्किल दिख रही है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में कांग्रेस बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और उसने सरकार बनाई। ऐसे में इसका असर लोकसभा चुनाव पर भी देखने को मिल सकता है। भाजपा की कुछ सीटों पर बागी भी खेल बिगाड़ सकते हैं।
मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा ने 2019 में 28 निर्वाचन क्षेत्रों में से 25 में अपने उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित कर ली थी। पिछली बार किसी पार्टी ने कर्नाटक में 25 या उससे अधिक सीटें तीन दशक से भी पहले जीती थीं। 1989 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने कर्नाटक की 28 सीटों में से 27 सीटें जीती थीं। तब से कांग्रेस के जीती गई लोकसभा सीटों की संख्या में धीरे-धीरे गिरावट देखी गई। 2019 में यह अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई जब पार्टी ने संसदीय चुनावों में सिर्फ एक सीट जीती। भगवा पार्टी ने पहली बार 1991 में कर्नाटक में अपना खाता खोला था, जब भाजपा के तीन नेता राज्य से चुने गए थे। पहले के मैंगलोर निर्वाचन क्षेत्र से वी धनंजय कुमार, बेंगलूरु दक्षिण से के वेंकटगिरी गौड़ा और तुमकुर से एस मल्लिकार्जुनैया। अगले चुनाव में भाजपा अपनी सीटों की संख्या पांच तक बढ़ाने में सफल रही। तब से बीजेपी की ताकत बढ़ी है, जिसके लिए 90 के दशक के अंत में जनता दल का विभाजन एक प्रमुख कारक माना जाता है। 1998 में 13 सीटें जीतकर पहली बार कर्नाटक से दोहरे अंक में सीटें हासिल करने वाली भाजपा अपनी सीटें और बढ़ाने में सफल रही। 2014 में जनता दल (यूनाइटेड) के भाजपा में विलय के बाद इसकी संख्या 18 हो गई, जिसके परिणामस्वरूप पार्टी को महत्वपूर्ण लाभ हुआ। खासकर लिंगायत बहुल उत्तरी कर्नाटक क्षेत्र में। 2009 और 2014 के अगले दो चुनावों में कर्नाटक से भाजपा की सीटें क्रमश: 19 और 17 थीं। इस बीच कांग्रेस ने 1998 के बाद से कर्नाटक में नौ से अधिक सीटें नहीं जीती। कर्नाटक में कांग्रेस की सबसे अधिक सीटें 1998 और 2014 के चुनावों में थीं जब कांग्रेस ने क्रमश: नौ सीटें जीतीं। कांग्रेस और जद (एस) दोनों ने 2019 में अपनी सबसे कम सीटें दर्ज कीं, जब दोनों पार्टियों ने एक-एक सीट जीती।