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देश में हर साल 22,000 टन खाना होता है बर्बाद, गरीबों की भूख मिटाने के लिए इस शख्स ने उठाया ये कदम

इस पहल की सफलता से उत्साहित कुंडु ने एक और पहल ‘शेयर योर स्पेशल डे’ की शुरुआत की है, जिसमें हर क्षेत्र के लोग अपने जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए गरीब बच्चों को पौष्टिक खाना खिलाते हैं।

नई दिल्लीJan 28, 2019 / 10:37 am

Priya Singh

meet chandra sekhar kundu who feed poor from excess food of canteen

देश में हर साल 22,000 टन खाना होता है बर्बाद, गरीबों की भूख मिटाने के लिए इस शख्स ने उठाया ये कदम

नई दिल्ली। उत्सवों, पार्टियों और घरों में भी लोग अक्सर बचा हुआ भोजन फेंक देते हैं। शहरों में भोजन की इस बर्बादी की प्रवृत्ति ज्यादा देखी जा रही है, ऐसे में पश्चिम बंगाल के आसनसोल के एक शिक्षक का कार्य काफी प्रशंसनीय है, जो इस भोजन को इकट्ठा कर सैकड़ों गरीबों की भूख मिटाते हैं। कंप्यूटर साइंस के शिक्षक चंद्रशेखर कुंडु फूड एजुकेशन एंड इकॉनोमिक डेवलपमेंट (फीड) के संस्थापक हैं। यह संस्था रोज कॉलेजों और दफ्तरों के कैंटीन से बचा हुआ भोजन (जूठन नहीं) इकट्ठा करती है और कोलकाता व आसनसोल के करीब 200 गरीब बच्चों में बांटकर उनकी भूख मिटाते हैं। कुंडु यह काम पिछले चार साल से कर रहे हैं। तीन साल पहले कुंडु और उनके सहयोगियों ने आसनसोल की गलियों के बच्चों को रोज खाना खिलाने के लिए ताजा भोजन तैयार करने का काम भी शुरू किया। वे उनको भोजन और पोषण के संबंध में जरूरी बातें भी बताते हैं।

कुंडु को आसपास के लोग भोजनवाला कहकर पुकारते हैं। उन्होंने बताया, “हमारे देश में अनेक लोगों को भूखे रहना पड़ता है। सबको खाना खिलाना हमारे लिए संभव नहीं है, लेकिन अगर हम भोजन की बर्बादी रोक दें और बचा हुआ भोजन जरूरतमंदों में बांट दें तो मेरा मानना है कि हम कई लोगों का पेट भर सकते हैं और उनको भूखे रात नहीं गुजारनी पड़ेगी।” उन्होंने बताया, “मैंने भोजन की बर्बादी को लेकर 2016 में एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) के माध्यम से जानकारी मांगी तो पता चला कि भारत में हर साल 22,000 टन खाद्यान्नों की बर्बादी होती है। अगर हम इसका सिर्फ 10 फीसदी भी बचा लें तो यह उतना ही होगा जितनी व्यवस्था सरकार द्वारा हर साल मिड-डे मील के लिए की जाती है।”

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वर्ष 2015 की बात है। कुंडु अपने बेटे श्रीदीप के जन्मदिन की पार्टी में बचा हुआ भोजन फेंक रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि गली के दो बच्चे कूड़ेदान से चिकन के टुकड़े चुनने लगे। उस रात की घटना ने हमेशा के लिए कुंडु की जिंदगी बदल दी। घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा, “उस दृश्य से दुखी होकर मैं उनको अपने अपने घर ले गया और उस समय हम जो कुछ व्यवस्था कर पाए वह उसे दे दिया। बचा हुआ भोजन फेंककर मैं खुद को दोषी मान रहा था कि मुझे पहले कभी ऐसा विचार क्यों नहीं आया कि भोजन फेंकना नहीं चाहिए। मैं उस रात सो नहीं पाया।”

इस घटना के कुछ महीनों बाद कुंडु ने इस मसले पर जागरूकता फैलाने के लिए भोजन की बर्बादी पर एक लघु फिल्म बनाई। उनके इस प्रयास की आसनसोल इंजीनियरिंग कॉलेज में उनके सहकर्मियों और छात्रों ने काफी सराहना की। भोजन की बर्बादी की निंदा करते हुए उन्होंने बंगाल सेव फूड एंड सेव लाइफ ब्रिगेड नाम से एक एनजीओ की स्थापना की। उनकी टीम में कॉलेज के छात्र और सहयोगी शिक्षक शामिल हुए। वे शुरुआत में कॉलेज कैंटीन से बचा हुआ भोजन इकट्ठा करते थे और आसनसोल स्टेशन की झोपड़ियों में 15 से 20 गरीब बच्चों के बीच बांटते थे।

chandra sekhar kundu

उन्होंने कहा, “हमने 2016 में फीड की स्थापना करने के बाद आसनसोल और कोलकाता में कई शैक्षणिक संस्थानों और दफ्तरों के कैंटीन मालिकों से संपर्क किया। आज आसनसोल स्थित सीआईएसएफ बैरक, आईआईएम, कोलकाता और कुछ अन्य दफ्तरों से ‘कमिटमेंट 365 डेज’ परियोजना के तहत हमारी साझेदारी है। संबंधित संगठन के कैंटीन द्वारा हमें रोज बचा हुआ भोजन प्रदान किया जाता है।”कुंडु ने कहा, “हम गलियों के 180 बच्चों को रोज दिन का भोजन प्रदान करते हैं।”

उन्होंने कहा, “रात में भोजन संग्रह करना कठिन है, क्योंकि भोजन संग्रह करके बच्चों को देने में काफी देर हो जाती है। इसलिए हमारे कार्यकर्ता आसनसोल में दो जगहों पर ताजा भोजन तैयार करते हैं और हर रात करीब करीब 100 बच्चों को प्रदान किया जाता है।” उन्होंने बताया कि इस पहल में भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) द्वारा आंशिक धन मुहैया करवाया जाता है। इस पहल की सफलता से उत्साहित कुंडु ने एक और पहल ‘शेयर योर स्पेशल डे’ की शुरुआत की है, जिसमें हर क्षेत्र के लोग अपने जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए गरीब बच्चों को पौष्टिक खाना खिलाते हैं। उन्होंने कहा, “हम इसका विस्तार करने की योजना पर काम कर रहे हैं और कोलकाता में कई संगठनों और भोजनालयों से हमने इस संबंध में बात की है।”

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