टूटी हॉकी से की खेल की शुरुआत
धनराज का बचपन Ordinance Factory Staff Colony में बीता, जहां उनके पिता बतौर ग्राउंड्समैन काम करते थे। बड़ा परिवार और सीमित आय के कारण धनराज पिल्लै ( dhanraj pillay ) का परिवार सुख-सुविधाओं के अभाव में ही रहता था। खुद धनराज टूटी हुई हॉकी और फेंकी हुई बॉल से खेला करते थे और ऐसे करने की प्रेरणा उन्हें उनकी मां से मिलती थी। इसके बाद उन्होंने भारतीय हॉकी टीम की कमान भी संभाली थी। तमाम तकलीफों के बीच भी उनकी मां हमेशा अपने पांचों बेटों को हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया करती थीं। धनराज ने अंतराष्ट्रीय हॉकी में साल 1989 में पहली बार कदम रखा। उन्होंने पहली बार नई दिल्ली ( New Delhi ) में ऑलवेन एशिया कप खेला था।
ऐसा रहा करियर
दिसंबर 1989 से अगस्त 2004 के बीच धनराज ने हॉकी खेली। साल 1992, 1996, 2000 और 2004 के ओलपिंक में उन्होंने शिरकत की। वहीं साल 1995, 1996, 2002 और 2003 में हुई चैंपियंस ट्रॉफी का भी वो हिस्सा रहे। साल 1990, 1994, 1998, और 2002 में हुए एशियन गेम्स में भी धनराज पिल्लै खेले। भारत ने 1998 में और 2003 में एशियन गेम्स और एशिया कप धनराज पिल्लै की कप्तानी में जीता। साथ ही वह बैंकाक एशियन गेम्स में सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी बने।