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मिजोरम चुनाव 2018: कांग्रेस के गढ़ में भाजपा ने बनाया तीसरा कोण, कांग्रेस अल्पसंख्यक कार्ड के सहारे

भाजपा मिजो नेशनल फ्रंट(एमएनएफ) और अन्य छोटी पार्टियों के जरिए राज्य में तीसरी बार कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने की कोशिश कर रही है…

गुवाहाटीNov 15, 2018 / 06:33 pm

Prateek

राजीव कुमार की रिपोर्ट…

(गुवाहाटी): मिजोरम में 28 नवंबर को 40 सीटों के लिए विधानसभा चुनाव होंगे। नामांकन दाखिल करने का कार्य पूरा हो चुका है। मैदान में 201 उम्मीदवार हैं। मतदान के नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे। राज्य में इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। कांग्रेस लगातार दो बार से सत्ता में हैं, वहीं भाजपा कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर के लिए जी-जान से जुटी है। मिजोरम में पिछले चुनाव में भाजपा का खाता नहीं खुला था, लेकिन इस बार भाजपा ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। भाजपा मिजो नेशनल फ्रंट(एमएनएफ) और अन्य छोटी पार्टियों के जरिए राज्य में तीसरी बार कांग्रेस को सत्ता में आने से रोकने की कोशिश कर रही है।

 

मुख्यमंत्री ललथनहवला ने दो जगह से नामांकन भरा

मिजोरम में आठ उम्मीदवारों ने दो-दो सीटों के लिए नामांकन दाखिल किए हैं। इनमें मुख्यमंत्री ललथनहवला, जोराम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार लालदुहोमा, पीपुल्स रिप्रेसेंटेशन फॉर आइडेंटिटी एंड स्टेटस आफ मिजोरम (पीआरआईएसएम) अध्यक्ष वनलालरूआता शामिल हैं।

 

भाजपा छोटे दलों के सहारे

भाजपा असम, त्रिपुरा,मणिपुर और अरुणाचल में सत्ता में है, वहीं मेघालय और नगालैंड में वह गठबंधन सरकार में भागीदार है। इसलिए वह कोशिश में है कि मिजोरम में सत्ता में आकर पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त कर दे, लेकिन यह आसान नहीं है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मिजोरम में 87 प्रतिशत लोग ईसाई हैं। भाजपा अपने को अल्पसंख्यक की हितैषी बताने की कोशिश कर रही है, पर ईसाई लोग इसे स्वीकारेंगे, इसमें संदेह है। मिजो नेशनल फ्रंट(एमएनएफ)भाजपा के बनाए नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलांयस(नेडा) में शामिल है। भाजपा की कोशिश होगी कि एमएनएफ के जरिए वह सत्ता में भागीदार बन सके। फिलहाल सभी दल अलग-अलग चुनाव मैदान में हैं।

 

कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर

protest file photo

राज्य में कांग्रेस प्रचार कर रही है कि भाजपा सत्ता में आई तो ईसाई लोगों पर हिंदुत्ववाद थोपेगी। पिछले दो बार से सत्ता पर काबिज कांग्रेस के खिलाफ भी सत्ताविरोधी लहर है। ढांचागत सुविधाओं का विकास और शराबबंदी को वापस लेने जैसा मुद्दा कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। मिजोरम की सड़कें बेहाल हैं। शराब के कारण राज्य में काफी लोगों की मौतें हुई है। मिजोरम में 1984 से कांग्रेस या एमएनएफ की सरकारें रही हैं।

 

दल-बदल का जोर

कांग्रेस का दामन छोड़ मंत्री और विधायक एमएनएफ और भाजपा में शामिल हुए हैं। पूर्व मंत्री और चकमा नेता डा.बी डी चकमा ने हाल ही कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। विधानसभा अध्यक्ष हाईपे ने भी कांग्रेस का टिकट नहीं मिलने से भाजपा खेमे का रुख किया। एमएनएफ,नेशनलपीपुल्स पार्टी, जोरम नेशनल पार्टी और मिजो पीपुल्स कान्वेंशन जैसी क्षेत्रीय पार्टियां मैदान में हैं। एमएनएफ ने तो अपने नेता जोरामथांग के नेतृत्व में दो बार सरकार बनाई थी।

वोट शेयर घटने पर भी सरकार

वर्ष 2008 के चुनाव में विधानसभा की चालीस सीटों में से 32 कांग्रेस को मिली थी। कांग्रेस का वोट शेयर 39 प्रतिशत था। वहीं एमएनएफ को तीन सीटें मिली थी और वोट शेयर 31 प्रतिशत था। वर्ष 2013 में कांग्रेस को 34 सीटें मिली और वोट शेयर 45 प्रतिशत था जबकि एमएनएफ को वोट शेयर घटकर 29 प्रतिशत हो गया था और पांच सीटें मिली थी। मिजोरम में कुल मतदाताओं की संख्या 7.68 लाख है। इसमें महिला मतदाताओं की संख्या 3.93 लाख है। चुनाव के लिए 1164 मतदान केंद्र बनाए गए हैं।

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