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गुना

आटो में क्षमता से अधिक बच्चे

आटो में क्षमता से अधिक बच्चे बैठाकर जान जोखिम में डालने का सिलसिला जारी है। आटो चालकों को न हाईकोर्ट के आदेश की परवाह है और न ही ट्रैफिक पुलिस का खौफ। इसी का नतीजा है कि आटो में बच्चों को ठूंसकर पीछे लटकाते हुए बैठाया जा रहा है।

गुनाOct 26, 2018 / 09:00 pm

brajesh tiwari

patrika news

आटो में क्षमता से अधिक बच्चे बैठाकर जान जोखिम में डालने का सिलसिला जारी है।

गुना. दरअसल, ऑटो में ड्राइवर सीट पर सवारी न बैठाने का नियम है, लेकिन सड़कों पर दौड़ते आटो में चालक के दोनों ओर बच्चों को लटकाया जाता है। इस तरह के नजारे स्कूल शुरू होने और छूटने के समय आसानी से देखे जा सकते हैं। पत्रिका ने जब शहर के विभिन्न चौराहों और मार्गों का जायजा लिया, तो कई यात्री वाहन सड़कों पर ओवरलोड दौड़ते नजर आए। इनमें कुछ वाहन तो ऐसे थे, जिनमें सवारियों को पीछे और आगे लटकाकर बैठाया गया था। आटोचालकों की मनमानी का आलम यह कि सड़कों पर दौड़ते हुए अचानक रोककर सवारियां बैठाते हैं, जिससे पीछे आ रहे वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका बनी रहती है। इस तरह सड़कों पर ट्रैफिक नियमों को तोडऩा और सवारियों की जान जोखिम में डालकर यात्रा कराना आम हो चुका है। खास बात यह है कि आटो में बच्चे बिठाते समय उनकी सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा जाता है। बच्चे ऑटो से बाहर झांकते रहते हैं और ऑटो चालक को होश ही नहीं रहता है। इससे हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।

बार-बार बनी है विवाद की स्थिति
ऑटो में स्कूली बच्चों को क्षमता से अधिक बिठाने के मामले पर पुलिस-अभिभावक और ऑटो चालकों में कई बार मतभेद व विवाद की स्थिति बनी है। यातायात पुलिस यदा-कदा लापरवाही करने वाले ऑटो चालकों पर कार्रवाई करती है तो यूनियनों के माध्यम से यह प्रदर्शन करने और हंगामा करने उतर आते हैं। यातायात पुलिस के तत्कालीन प्रभारी सुनील शर्मा के कार्यकाल में ऑटो चालकों की हड़ताल से काफी दिनों तक बच्चे और अभिभावक परेशान हुए थे। इसके बाद सड़क सुरक्षा समिति की बैठकों में भी यह मुद्दा बार-बार उठाया जाता है। लेकिन कोई सकारात्मक पहल या नतीजा अभी तक नहीं निकला है। ऑटो चालक और अभिभावकों में किराए में बढ़ोत्तरी के मामले में एकराय न होना पाना इस विवाद की सबसे बड़ी वजह है। ऑटो चालक खर्चे के मुताबिक प्रति बच्चे का किराया बढ़ाने की मांग करते हैं। लेकिन पालक किराए में बढ़ोत्तरी पर सहमत नहीं होते हैं और पूरा मामला फिर विवाद की भेंट चढ़ जाता है। जिसमें सामंजरू के लिए हस्तक्षेप जरूरी है।

ऐसे हैं हालात
बच्चों की सुरक्षा और सुविधा से आटोचालकों को कोई सरोकार नहीं है। स्कूली बच्चों को ठूंस-ठूंसकर भरा जा रहा है, जिसमें चालक सीट के दोनों ओर बच्चों को बैठाया जा रहा है। आटो की पिछली सीट के आगे लकड़ी का पटिया लगाकर सवारियों को बैठाकर सफर को खतरनाक बनाया जा रहा है। हाईकोर्ट के आदेश आटो में चार बच्चे बैठाने का है, लेकिन नियम-आदेशों को धता बताकर बेखौफ आटो सड़कों पर दौड़ते हैं। स्कूली बच्चों के यह हालात हैं, तो सवारियां ढोते समय क्या हालात होंगे! रास्ते में आटो रोकना और ओवरलोड सवारियां भरने का क्रम लगातार जारी है।

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