script#OnceUponatime सावन में रक्षाबंधन से 15 दिन पहले मायके आती थीं बहनें | Once Upon a Time: Story of Raksha Bandhan and Hriyali Teej | Patrika News
फिरोजाबाद

#OnceUponatime सावन में रक्षाबंधन से 15 दिन पहले मायके आती थीं बहनें

-अब हरियाली तीज पर भी नहीं सुनाई देतीं सावन की मल्हार।-सहेलियां एक साथ झूला झूलतीं और गाती थीं मल्हारें।-अपने समय को याद कर भावुक हुईं जनक माता।

फिरोजाबादAug 03, 2019 / 11:19 am

suchita mishra

Janak Mata

Janak Mata

फिरोजाबाद। रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का भाई और बहन का पवित्र त्योहार है। बहनें भाई की खुशहाली के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं तो वहीं भाई बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हैं। बदलते परिवेश में अब त्योहारों के मायने भी बदल गए हैं। रिश्तों की डोर कमजोर हो चली है तो प्रेम, भावना और विश्वास की डोर भी कमजोर हो गई है। रक्षाबंधन के त्योहार में आए बदलाव को लेकर पत्रिका ने जनक माता बातचीत की।
जनक माता बताती हैं कि माता—पिता के यहां बहनों को बहुत प्यार मिलता था। पहले ब्राहमण राखी (Rakhi) बांधने के लिए आते थे। 15 दिन पहले बहनें भाइयों के यहां आ जाती थीं। भाई बहनों को झूला झुलाते थे। रक्षाबंधन पर्व पर पहले बहनें घरों में घुंआ (भुजरिया) करती थीं। जिन्हें कानों में लगाते थे। लोग बहनों को उसके बदले कुछ न कुछ देते थे। पूरे परिवार में खुशी और उत्साह का माहौल होता था। एक जगह पूरे घर का पकवान बनता था। सभी मिलकर एक जगह बैठकर खाते थे।
ससुरालीजन बीच रास्ते से ले गए घर
जनक माता बताती हैं कि उनकी नई शादी हुई थी। उनकी ससुराल आगरा (Agra) में थी। वह रक्षाबंधन पर फिरोजाबाद अपने मायके आने के लिए घर से निकली थीं। वह आगरा फोर्ट स्टेशन पर खड़ी थीं। तभी किसी ने ससुराल में कह दिया कि आपकी बहू स्टेशन पर घूम रही है। उसके बाद ससुरालीजन उन्हें अपने साथ ससुराल ले गए और उन्हें मायके नहीं जाने दिया। तब वह खूब रोई थीं।
भावुक हुईं जनक माता
जनक माता बताती हैं कि अब रिश्ते और नाते केवल नाम मात्र को रह गए हैं। अब न तो बहनों के पास समय है और न भाइयों के पास ही। बच्चे स्कूल जाने लगते हैं। उन्हें छुट्टी नहीं मिलती। कुछ नौकरी वाली होती हैं। उन्हें समय नहीं होता। डाक से राखी भेजती हैं। रक्षाबंधन के नाम पर अब केवल खानापूर्ति रह गई है। सभी त्योहार अब धीरे—धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। जब से धन को महत्व दिया गया, तभी से रिश्तों की डोर कमजोर होती चली गई।
जाति पांति से हटकर होती थी खुशी
गांव की सभी सखियां मिलकर राखी के त्यौहार की खुशियां मनाती थीं। पेड़ पर एक झूला पड़ता था। जिस पर गांव की सभी सहेली एकत्रित होकर एक दूसरे को झुलाती थीं और मल्हारें गाती थीं। उस समय जाति नहीं था। सभी वर्गों की लड़कियां केवल सहेली हुआ करती थीं। वह सभी एक दूसरे के सुख दुख में बराबर की भागीदारी निभाती थीं।
परिवार में एक होता था मुखिया
जनक माता बताती हैं कि इस परिवर्तन के पीछे भी एक कारण है। पहले परिवार में घर का बुजुर्ग ही मुखिया होता था। बाकी सभी सदस्य उनके आदेशों का पालन करते थे। इसलिए परिवार एकजुट रहता था और परिवार के अंदर खुशियां होती थीं। मान, सम्मान, रिश्ते होते थे लेकिन जब से बुजुर्गों को किनारे किया गया और युवा मुखिया होने लगे, परिवार की डोर टूटने लगी। अब परिवार में सभी मुखिया होते हैं और घर का बुजुर्ग अपने आप को असहाय समझता है। यदि अभी भी परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी घर के बुजुर्ग को दी जाए तो अभी भी रिश्तों में मिठास घुल सकती है।
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