उसके शरीर के निचले हिस्से ने ही तो काम करना बंद किया था, दिमाग ने नहीं। पैरों ने ही तो साथ चलने से इनकार किया था, इरादों ने उड़ने से तो नहीं।
हादसे ने उसके शरीर के निचले हिस्से को छीन लिया। पैरों ने साथ छोड़ दिया लेकिन इरादे आसमान में उड़ने के थे। ये हैं जयपुर की इशिता लालवानी। जितनी बड़ी इनकी सफलता है उतनी ही बड़ी प्रेरित करने वाली कहानी और इनका जज्बा।
2013 में एक हादसे ने शरीर के निचले हिस्से की बलि लेकर इशिता को ब्हील चेयर पर पहुंचा दिया लेकिन ब्हील चेयर के ब्हील्स को इशिता ने अपने सपने पूरे करने का खंभा बना लिया।
एक्सीडेंट के बाद 6 महीने बैड पर ही गुजारने पड़े, करवट भी नहीं ले पाती थीं, एेसे में साथ आए परिवार और दोस्त लोग। मजबूत इच्छाशक्ति और दोस्तों के साथ से मिले विश्वास की बदौलत इशिता ने 12वीं में 92.5 परसेंट मार्क्स हासिल किए।
फिर सपनों का फैलाव बढ़ने लगा तो आईआईएम इंट्रेंस के लिए महज एक महीने का क्रेश कोर्स किया और सफलता खुद चलकर इशिता के पास आ गई। IIM इंदौर के लिए इशिता का सलेक्शन हो गया।
अब इशिता एेसी बिजनेस लेडी बनना चाहती हैं जो लोगों की मदद करे और ब्हील चेयर मॉडिफिकेशन बिजनेस को तरजीह दे।
इशिता ने पत्रिका प्लस से बातचीत में बताया कि नौकरी की वजह से उनके पिता उनके साथ नहीं रह पाते इसलिए यहां मां ही मेरी देखभाल करती हैं। भाई भी जयपुर से बाहर पढ़ाई करता है। अपनी सफलता का श्रेय इशिता ने अपने टीचर अजय सर को दिया।
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