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डिंडोरी

मध्यप्रदेश का एक ऐसा गांव जहां भाईदूज के दिन अनोखे अंदाज में खेली जाती है होली

बीस फिट ग्रीस लगे ऊंचे पोल पर गुड की पोटली निकालने होती है प्रतियोगिता

डिंडोरीMar 28, 2024 / 12:10 pm

shubham singh

A village in Madhya Pradesh where Holi is played in a unique style on the day of Bhaidooj.

A village in Madhya Pradesh where Holi is played in a unique style on the day of Bhaidooj.

डिंडौरी. धनवासी गांव में होली के दूसरे दिन फाग की मंडली फाग की धुनों पर मस्ती में थिरकते हैं। इस दौरान एक ओर पुरुष अपनी मंडली के साथ फाग का आनंद लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ महिलाओं पर भी फागुन का रंग चढ़ा दिखाई देता है। जिले के धनवासी गांव में होली के दूसरे दिन यानी भाईदूज के दिन अनोखे अंदाज में होली मनाई जाती है, जिसे परिया तोडन होली के नाम से जाना जाता है। धनवासी गांव के ग्रामीण सालों से इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं, जिसे देखने के लिए न सिर्फ गांव के बल्कि, आसपास से ग्रामीण बड़ी तादाद में जुटते हैं। दरअसल परिया तोडऩ एक प्रकार की प्रतियोगिता है, जिसमें न सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाएं भी बढ़चढकऱ हिस्सा लेती हैं। लकड़ी के ऊपरी हिस्से पर करीब बीस फीट की ऊंचाई पर गुड़ की पोटली को बांध दिया जाता है। इसके बाद लकड़ी के पोल पर ऑयल का लेप लगाकर उसे बेहद चिकना कर दिया जाता है और फिर इसी चिकने पोल पर बारी-बारी से महिला एवं पुरुष चढ़ते हैं। इस दौरान वह पोल के ऊपरी हिस्से पर बंधे हुए गुड़ की पोटली को निकालने का प्रयास करते हैं। इस दौरान दूसरा पक्ष रंग गुलाल डालकर पोल पर चढऩे से रोकने की कोशिश करता है। गांव के लोग इस परंपरा के जरिए महिला-पुरुष समानता का संदेश देते हैं। इस परंपरा को नशे से बचाने का जरिया भी माना जाता है।
ऐसे शुरू होती है तैयारी
धनवासी गांव में होली के दूसरे दिन फाग की मंडली फाग की धुनों पर मस्ती में थिरकती है। सालों पुरानी परंपरा के मुताबिक गांव में परिया तोडऩ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसकी तैयारी दोपहर से ही शुरू कर दी जाती है। पहले करीब 20 फीट लंबे पोल को औजारों से चिकना किया जाता है और फिर उस पोल पर तेल का लेप लगा दिया जाता है, ताकि पोल पर कोई आसानी से चढ़ न पाए। पोल के ऊपरी हिस्से में गुड की दो थैलियां लटका दी जाती हैं और पोल को जमीन में गाड़ दिया जाता है। इसके बाद शुरू होती है मस्ती की होली।
दिया जाता है समानता का संदेश
यहां महिला और पुरुष अलग-अलग टोलियों में इस पर चढकऱ गुड़ की थैलियों को निकालने का प्रयास करते हैं और दूसरा पक्ष रंग गुलाल डालकर उन्हें रोकने का प्रयास करता है। ग्रामीणों के मुताबिक होली में नशे का प्रचलन अधिक रहता है, लेकिन इस तरह की एक परंपरा विकसित हो जाने से अब यहां पर युवा वर्ग इन आयोजनों में शामिल होने के लिए आ जाते हैं। इससे वह नशे से भी दूर रहते हैं। इसके अलावा महिला और पुरुषों को समान रूप से अवसर दिया जाता है, ताकि महिलाएं भी अपने आपको किसी तरह से कम न समझें।

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